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importance of active listening

Importance Of Active Listening

Introduction 

आज मैं आपसे एक ऐसी चीज़ के बारे में बात करने आया हूँ, जिसने मेरी ज़िंदगी में सच में एक बड़ा बदलाव लाया है। आपको पता है, जब मैंने करियर की शुरुआत की थी, तब मुझे लगता था कि सबसे ज़रूरी तो बोलना और अपनी बात रखना है। मैं हमेशा यही सोचता था कि कैसे मैं लोगों को इंप्रेस करूँ, कैसे उन्हें अपनी बात समझाऊँ। लेकिन फिर एक दिन मेरे एक पुराने दोस्त ने मुझसे कहा, “यार, कभी सिर्फ़ सुनने की कोशिश कर।” मुझे उस दिन एक बात समझ आई कि importance of active listening सिर्फ़ एक किताबी बात नहीं है, बल्कि यह एक ऐसी सुपरपावर है जो आपको पर्सनल और प्रोफेशनल, दोनों ही फ्रंट पर बहुत आगे ले जा सकती है।

अब आप सोच रहे होंगे कि इसमें नया क्या है। सुनना तो सबको आता है। लेकिन सच कहूँ तो, हममें से ज़्यादातर लोग सिर्फ़ जवाब देने के लिए सुनते हैं, समझने के लिए नहीं। मैंने यह खुद अपनी आँखों से देखा है जब मैंने कई क्लाइंट मीटिंग्स में बिना किसी को इंटरप्ट किए, बस ध्यान से उनकी बातें सुनीं। यकीन मानिए, जब आप किसी को पूरी तरह से सुनते हैं, तो उनकी आँखें और आवाज़ आपको वो सब कुछ बता देती हैं जो वो बोल भी नहीं रहे होते। कभी-कभी लगता है कि किसी के विचारों को समझना ही आधी जंग जीत लेना है।

तो, इस ब्लॉग पोस्ट में हम सिर्फ़ ज्ञान बघारेंगे नहीं, बल्कि मैं आपको अपने कुछ रियल-लाइफ एक्सपीरियंस और प्रैक्टिकल टिप्स दूँगा कि कैसे आप importance of active listening को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी का हिस्सा बना सकते हैं। हम देखेंगे कि कैसे यह आपको बेहतर रिश्ते बनाने में मदद कर सकता है, आपकी कम्युनिकेशन स्किल्स को एक नया आयाम दे सकता है, और यहाँ तक कि आपके करियर में भी चार चाँद लगा सकता है। अगर आप भी जानना चाहते हैं कि कैसे सिर्फ़ ‘सुनने’ की आदत से आप अपनी ज़िंदगी को और भी बेहतर बना सकते हैं, तो मेरे साथ बने रहिए। यह आर्टिकल आपके लिए है, अगर आप चाहते हैं कि लोग आपको सिर्फ़ सुनें नहीं, बल्कि समझें भी। 

what is active listening

तो चलिए, अब समझते हैं कि What is Active Listening आपने कई बार किसी को कहते सुना होगा, “मैं ध्यान से सुन रहा हूँ,” लेकिन क्या वाकई में वो सुन रहे होते हैं? मेरे अनुभव में, अक्सर लोग सिर्फ़ सुनने का नाटक करते हैं, असल में वो बस जवाब देने का इंतज़ार कर रहे होते हैं। स्कूल का वो दौर याद है जब टीचर पढ़ा रहे होते थे और हम सिर हिलाते रहते थे। पर असल में हमारा ध्यान तो खिड़की के बाहर या किसी और चीज़ में होता था। बिल्कुल ऐसा ही एक अनुभव मुझे अपने एक क्लाइंट के साथ हुआ। वो मुझे अपनी समस्या समझा रहा था और मैं सिर्फ़ ज़रूरी बातें नोट कर रहा था। पर जैसे ही मैंने बिना बीच में टोके, बिना कोई राय बनाए उसे पूरे मन से सुनना शुरू किया, तो मुझे उसकी असली परेशानी का अंदाज़ा हुआ—एक ऐसी बात जो उसने शायद खुद भी साफ़-साफ़ नहीं कही थी। यही होती है एक्टिव लिसनिंग—सिर्फ़ शब्द नहीं सुनना, बल्कि सामने वाले के इमोशंस, हावभाव और अनकहे संकेतों को भी समझना। यही तरीका हमें बेहतर संवाद और मजबूत रिश्तों की ओर ले जाता है।

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ये सिर्फ़ कान से सुनने से कहीं ज़्यादा है, दोस्तों। ये ऐसा है जैसे आप किसी दोस्त की कहानी सुन रहे हों और आपकी पूरी अटेंशन उसी पर हो। आप सिर्फ़ शब्द नहीं सुनते, बल्कि आप उनके पीछे की भावनाएं, उनकी चिंताएं और उनकी खुशियां भी महसूस करते हैं। जब मैंने पहली बार ये चीज़ अपने काम में अपनाई, तो मेरी टीम के लोग और मेरे क्लाइंट्स दोनों मुझसे ज़्यादा जुड़ने लगे। उन्हें लगा कि मैं सिर्फ़ उनका काम नहीं कर रहा, बल्कि उनकी बात को समझ भी रहा हूँ।

मेरे लिए, सक्रिय सुनना सालों के अनुभव के बाद what is active listening एक ऐसी कला बन गई है, जो आपको दूसरों से जोड़े रखती है। ये आपको सिर्फ़ सुनने वाला नहीं बनाता, बल्कि एक भरोसेमंद व्यक्ति बनाता है। जब आप किसी को पूरी तरह से सुनते हैं, तो आप उसे ये दिखाते हैं कि ‘हाँ, तुम मेरे लिए ज़रूरी हो’। और ये छोटी सी बात, कितनी बड़ी ताकत रखती है, ये तो आप तभी समझेंगे जब खुद इसे आजमाएंगे। 

benefits of active listening

अब जब हमने समझ लिया है कि सक्रिय सुनना क्या है, तो आइए बात करते हैं कि इसके फ़ायदे क्या-क्या हैं। आपने कभी सोचा है कि जब आप किसी की बात को सच में सुनते हैं, तो क्या होता है। मेरे करियर के शुरुआती दिनों में, मैं अक्सर सोचता था कि बस अपने प्रोडक्ट्स और सेवाओं के बारे में बताकर ही मैं ग्राहकों को जीत सकता हूँ। पर धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि असली जादू तो तब होता है जब आप उनकी ज़रूरतों और परेशानियों को गहराई से समझते हैं। और यहीं पर benefits of active listening दिखना शुरू हुए।

सबसे बड़ा फ़ायदा तो यह है कि आपके रिश्ते मज़बूत होते हैं। चाहे वो घर पर आपके मम्मी-पापा या भाई-बहन हों, या स्कूल में आपके दोस्त, जब आप उनकी बात को पूरी तवज्जो से सुनते हैं, तो उन्हें लगता है कि आप उनकी परवाह करते हैं। मुझे याद है एक बार मेरी टीम का एक सदस्य बहुत परेशान था, और मैंने बस उसे आधे घंटे तक सुना, बिना कोई सलाह दिए। बाद में उसने बताया कि सिर्फ़ सुनने भर से उसे इतनी मदद मिली कि वो अपनी समस्या का हल खुद निकाल पाया। सोचिए, एक छोटा सा काम और कितना बड़ा असर।

दूसरा इसका एक और बड़ा फ़ायदा यह है कि सक्रिय सुनना आपको चीज़ों को और भी गहराई से समझने में मदद करता है। कितनी बार ऐसा होता है कि हम किसी बात का गलत मतलब निकाल लेते हैं, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि हमने बोलने वाले को ठीक से सुना ही नहीं होता? मैंने अपने काम-काज के दौरान यह बात कई बार देखी है कि छोटी-छोटी व्यावसायिक बातचीत (business dealings) भी इसलिए अटक जाती हैं क्योंकि बातचीत में कहीं न कहीं कुछ कमी रह जाती है। जब आप पूरा ध्यान देकर सुनते हैं, तो आपको वो छोटी-छोटी बातें भी पता चल जाती हैं, जिन्हें अक्सर लोग अनसुना कर देते हैं। यह आदत सिर्फ़ बातचीत को बेहतर नहीं बनाती, बल्कि आपको ज़्यादा समझदारी और सटीकता के साथ सही फ़ैसले लेने में भी काफी मदद करती है।

और तीसरा, यह आपको दूसरों पर भरोसा बनाने में मदद करता है। जब लोग देखते हैं कि आप उनकी बात को गंभीरता से ले रहे हैं, तो वे आप पर ज़्यादा विश्वास करने लगते हैं। यह सिर्फ़ काम की बात नहीं है, बल्कि ज़िंदगी के हर मोड़ पर काम आता है। सालों से लोगों के साथ काम करते हुए मैंने सीखा है कि अगर आप चाहते हैं कि लोग आप पर विश्वास करें, तो पहले आपको उनकी बातों पर विश्वास करना सीखना होगा। और यह सब शुरू होता है सक्रिय रूप से सुनने से।

तो देखा आपने benefits of active listening आपकी ज़िंदगी में कितना कुछ बदल सकती है। अब आपके मन में ये सवाल आ रहा होगा कि ये सब तो ठीक है, पर सक्रिय रूप से सुनने के लिए हमें क्या करना चाहिए। 

active vs passive listening

तो दोस्तों, अब बात करते हैं एक बेहद अहम फ़र्क की—सक्रिय सुनना और निष्क्रिय सुनना (Active vs Passive Listening) में क्या अंतर है। इसे ऐसे समझिए जैसे आप क्लास में बैठे हों; कभी-कभी आप सिर्फ़ आवाज़ें सुनते हैं लेकिन दिमाग कहीं और होता है—यही होता है निष्क्रिय सुनना। मेरे शुरुआती दिनों में, जब मैं इस फील्ड में नया था, तो मैं भी यही करता था। क्लाइंट कुछ समझा रहा होता था और मैं बस “हूँ”, “अच्छा” जैसी प्रतिक्रियाएँ दे रहा होता था, जबकि असल में मैं अपनी अगली बात सोच रहा होता था। इस अनुभव ने मुझे सिखाया कि जब तक आप पूरी तरह से मानसिक रूप से मौजूद नहीं रहते, तब तक आप असली मायनों में सुन ही नहीं रहे होते।

लेकिन, जब आप ‘सक्रिय’ होकर सुनते हैं, तो यह पूरी तरह अलग कहानी है। इसमें आप सिर्फ़ शब्द नहीं सुनते, बल्कि आप सामने वाले की बातों पर पूरा ध्यान देते हैं। आप उनकी आँखों में देखते हैं, उनके हाव-भाव पर गौर करते हैं, और यह समझने की कोशिश करते हैं कि वे क्या महसूस कर रहे हैं।  मेरा सालों का अनुभव कहता है कि यही वो जगह है जहाँ असली कनेक्शन बनता है। जब आप किसी को सक्रिय रूप से सुनते हैं, तो आप उन्हें यह एहसास दिलाते हैं कि ‘मैं यहाँ तुम्हारे लिए हूँ, और तुम्हारी बात मेरे लिए मायने रखती है।’

तो active vs passive listening को ऐसे समझिए—पैसिव लिसनिंग में आप बस सुनते हैं, लेकिन उसमें दिलचस्पी या समझ नहीं होती, जैसे एक कान से सुनकर दूसरे से निकाल देना। उदाहरण के लिए, जब कोई दोस्त पूछे “आज क्या किया?” और आप बस “ठीक था” कहकर बात खत्म कर दें। इसके उलट, सक्रिय सुनने में आप न केवल ध्यान से सुनते हैं, बल्कि प्रतिक्रिया भी देते हैं, जैसे “अच्छा! फिर क्या हुआ?” या “तब तुम्हें कैसा लगा?” ऐसे सवाल सामने वाले को यह एहसास दिलाते हैं कि आप उसकी बातों में सचमुच रुचि ले रहे हैं और उसकी भावनाओं को समझना चाहते हैं।

मैंने अपनी कंपनी में कई वर्कशॉप्स की हैं जहाँ मैंने लोगों को यही सिखाया है कि कैसे वे निष्क्रिय से सक्रिय श्रोता बनें। और यकीन मानिए, इसके नतीजे ज़बरदस्त होते हैं। लोग एक-दूसरे को ज़्यादा बेहतर तरीके से समझने लगते हैं, और काम में भी ज़्यादा मन लगता है। यह सिर्फ़ व्यक्तिगत रिश्तों के लिए ही नहीं, बल्कि प्रोफेशनल लाइफ के लिए भी बहुत ज़रूरी है। 

active listening in communication

अब हम बात करेंगे कि बातचीत में सक्रिय सुनना (active listening in communication) कितना ज़रूरी है। इसे ऐसे समझिए जैसे आप दो दोस्त मिलकर कोई गेम खेल रहे हों। अगर एक दोस्त दूसरे की बात ध्यान से नहीं सुनेगा, तो गेम शायद खराब हो जाएगा, है ना। मुझे याद है, मेरे शुरुआती करियर में, मैं अक्सर अपनी बात पर ही ज़ोर देता था, बिना ये सोचे कि सामने वाला क्या कहना चाहता है। इसका नतीजा ये होता था कि कई बार बात बिगड़ जाती थी या फिर सामने वाला मेरी बात ठीक से समझ ही नहीं पाता था। फिर धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि अच्छी बातचीत का मतलब सिर्फ़ बोलना नहीं, बल्कि कम्युनिकेशन में सक्रिय सुनना भी है।

ये ऐसा है जैसे आप किसी की बात सिर्फ़ कानों से नहीं, बल्कि पूरे दिमाग और दिल से सुन रहे हों। जब आप किसी से बात कर रहे होते हैं और पूरी तरह से उसकी बात पर ध्यान देते हैं, तो उसे ये एहसास होता है कि आप उसे महत्व दे रहे हैं।  मैंने अपनी कंपनी में सैकड़ों लोगों को ट्रेनिंग दी है और मेरा अनुभव कहता है कि जब लोग एक-दूसरे को सक्रिय रूप से सुनना शुरू करते हैं, तो उनकी आपसी समझ बहुत बढ़ जाती है। इसका सीधा असर उनके काम पर दिखता है, और रिश्तों में भी मिठास घुल जाती है।

असल में, बातचीत में सक्रिय सुनना का मतलब है कि आप सिर्फ़ शब्दों को नहीं पकड़ते, बल्कि उनके पीछे छिपे इरादों, भावनाओं और जरूरतों को भी समझने की कोशिश करते हैं। जैसे, अगर आपका दोस्त आपसे उदास होकर कहे कि ‘आज मेरा दिन अच्छा नहीं था’, तो आप सिर्फ़ ‘ठीक है’ कहकर आगे नहीं बढ़ते। आप पूछते हैं, ‘अरे, क्या हुआ? मुझे बताओ!’ ये पूछना और फिर ध्यान से सुनना ही सक्रिय सुनने का हिस्सा है। इससे सामने वाले को लगता है कि आप उसकी परवाह करते हैं।

मेरे लिए, एक अच्छा active listening in communication वो नहीं जो बहुत अच्छा बोलता है, बल्कि वो है जो बहुत अच्छा सुनता भी है। कई सालों के अनुभव से मैंने ये जाना है कि जब आप सक्रिय होकर सुनते हैं, तो आप सिर्फ़ जानकारी इकट्ठा नहीं करते, बल्कि एक मज़बूत रिश्ता भी बनाते हैं। यही वजह है कि सफल नेता, अच्छे शिक्षक और बढ़िया दोस्त, सभी बातचीत में सक्रिय सुनने का हुनर जानते हैं। 

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active listening in the workplace

दोस्तों, काम की जगह पर सक्रिय सुनना (active listening in the workplace) बेहद ज़रूरी है, क्योंकि जब कोई टीम मिलकर एक बड़ा प्रोजेक्ट बना रही होती है, तो हर सदस्य की बात को सही ढंग से समझना जरूरी होता है वरना पूरी योजना बिगड़ सकती है। मुझे अपने करियर के शुरुआती दिनों में लगता था कि सिर्फ़ अपने काम पर ध्यान देना ही काफी है, लेकिन धीरे-धीरे एहसास हुआ कि ऑफिस में प्रभावी कम्युनिकेशन की असली ताकत अच्छी सुनने की आदत में छिपी है। जब आप अपने सहकर्मियों को ध्यान से सुनते हैं, तो न केवल गलतफहमियाँ कम होती हैं, बल्कि टीम का आपसी भरोसा और सहयोग भी मज़बूत होता है।

ये ऐसा होता है जैसे आप केवल अपने कानों से नहीं, बल्कि अपने दिल और समझ से भी सुन रहे हों। जब आप ऑफिस में अपने सहकर्मी या बॉस की बात पूरी तल्लीनता से सुनते हैं, तो उन्हें महसूस होता है कि उनकी बातों को आप सच में अहमियत दे रहे हैं। मैंने अपनी कंपनी में कई सालों तक टीमों के साथ काम किया है और मेरा अनुभव यही कहता है कि जब लोग एक-दूसरे को सक्रिय रूप से सुनना शुरू करते हैं, तो उनकी आपसी समझ गहरी होती है, सहयोग बेहतर होता है और काम में होने वाली ग़लतियाँ भी काफी हद तक कम हो जाती हैं।

असल में, active listening in the workplace मतलब है कि आप सिर्फ़ शब्दों को नहीं पकड़ते, बल्कि उनके पीछे छिपे इरादों, भावनाओं और ज़रूरतों को भी समझने की कोशिश करते हैं। जैसे, अगर आपका कोई सहकर्मी आपसे कहता है कि ‘आज काम बहुत ज़्यादा है’, तो आप सिर्फ़ ‘अच्छा’ कहकर आगे नहीं बढ़ते। आप पूछते हैं, ‘क्या तुम ठीक हो? क्या मैं कोई मदद कर सकता हूँ?’ ये पूछना और फिर ध्यान से सुनना ही सक्रिय सुनने का हिस्सा है। इससे सामने वाले को लगता है कि आप उसकी परवाह करते हैं और उसे समझते हैं।

मेरे लिए, एक अच्छा लीडर या टीम का सदस्य वो नहीं जो सिर्फ़ आदेश देता है, बल्कि वो है जो बहुत अच्छा सुनता भी है। कई सालों के अनुभव से मैंने ये जाना है कि जब आप सक्रिय होकर सुनते हैं, तो आप सिर्फ़ जानकारी इकट्ठा नहीं करते, बल्कि एक मज़बूत टीम और भरोसे का माहौल भी बनाते हैं। यही वजह है कि सफल टीमें और कंपनियाँ, सभी कार्यस्थल में सक्रिय सुनने के हुनर को बहुत महत्व देती हैं।

तो अब आप समझ गए होंगे कि ऑफिस में बेहतर माहौल बनाने और सफल होने में सक्रिय सुनने की कितनी बड़ी भूमिका है। 

how to practice active listening

अब तक हमने यह अच्छी तरह से समझ लिया है कि सक्रिय सुनना क्या होता है और इससे हमें क्या-क्या फ़ायदे मिलते हैं। लेकिन, असली मुद्दा यह है कि how to practice active listening यह कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो एक पल में आ जाए, जैसे किसी जादू की छड़ी घुमाने से सब कुछ ठीक हो जाए। मुझे याद है, जब मैंने पहली बार इस पर काम करना शुरू किया था, तो मुझे लगता था कि बस चुपचाप बैठे रहना ही काफ़ी है। पर समय के साथ मुझे एहसास हुआ कि इसमें कुछ छोटी-छोटी बातें हैं, जिन्हें अगर हम रोज़ करें, तो इस कला में माहिर बन सकते हैं।

सबसे पहला काम है, ध्यान भटकाने वाली चीज़ों से दूर रहना। सोचिए, अगर आपका दोस्त आपसे बात कर रहा हो और आप फ़ोन पर गेम खेल रहे हों, तो क्या उसे लगेगा कि आप सुन रहे हैं। नहीं ना। तो जब कोई बात कर रहा हो, तो अपना फ़ोन दूर रख दें, टीवी बंद कर दें, और पूरा ध्यान उसकी बातों पर लगाएं। मेरे करियर में कई बार ऐसा हुआ है कि मैंने मीटिंग्स में फ़ोन चेक करना बंद किया और पाया कि मुझे वो बारीक डिटेल्स भी सुनाई देने लगीं जो पहले कभी पकड़ में नहीं आती थीं।

दूसरा, आँखों में आँखें डालकर सुनना। ये बहुत छोटी सी बात लगती है, पर इसका बहुत बड़ा असर होता है। जब आप किसी की आँखों में देखकर बात सुनते हैं, तो आप उसे ये दिखाते हैं कि ‘मैं तुम्हें देख रहा हूँ और तुम्हारी बात को सुन रहा हूँ।’ ऐसा करने से सामने वाला भी ज़्यादा खुल कर बात करता है। मैंने इस आदत को अपने प्रोफेशनल और पर्सनल, दोनों ही रिश्तों में आज़माया है, और इसने हमेशा जादू का काम किया है।

तीसरा है, सवाल पूछना और बात को दोहराना। जब कोई कुछ कहे, तो आप उसकी बात को समझने के लिए छोटे-छोटे सवाल पूछ सकते हैं, जैसे ‘तो तुम्हारा मतलब ये है कि…’ या ‘क्या तुम इस बारे में और बता सकते हो?’ और कभी-कभी उसकी कही बात को अपने शब्दों में दोहराना, ये दिखाता है कि आपने उसकी बात को ठीक से समझा है। जैसे, अगर आपका बच्चा कहे, ‘मुझे भूख लगी है’, तो आप कह सकते हैं, ‘अच्छा, तुम्हें अभी कुछ खाने को चाहिए?’ ये how to practice active listening करने का एक बहुत ही असरदार तरीका है।

और हाँ, अपनी राय देने से बचना। जब कोई अपनी परेशानी बता रहा हो, तो अक्सर हमारा मन करता है कि तुरंत उसे सलाह दे दें। पर सक्रिय सुनने में सबसे पहले आपको सिर्फ़ सुनना होता है, बिना कोई राय बनाए या जज किए। मेरी सलाह है कि पहले पूरी बात सुनें, और फिर अगर ज़रूरत हो तो ही सलाह दें। ये आदत मैंने सालों के अनुभव से सीखी है, और इसने मुझे लोगों का ज़्यादा भरोसेमंद बनने में मदद की है।

ये सारे छोटे-छोटे कदम हैं, पर अगर आप इन्हें अपनी आदत बना लें, तो आप देखेंगे कि कैसे आप लोगों की बातों को ज़्यादा बेहतर तरीके से समझने लगेंगे, और आपके रिश्ते भी ज़्यादा मज़बूत होंगे।

why active listening matters

तो अब हम बात करते हैं कि सक्रिय सुनना क्यों ज़रूरी है। आपने सोचा है, जब हम किसी से बात करते हैं और वो हमारी बात ध्यान से नहीं सुनता, तो कैसा लगता है। बुरा लगता है ना जैसे, अगर आप अपनी मनपसंद कहानी सुना रहे हों और कोई बीच में ही फ़ोन देखने लगे। मुझे याद है, एक बार मेरे एक दोस्त ने मुझे बहुत ज़रूरी सलाह दी, पर मैं उस वक्त अपने ही ख्यालों में खोया हुआ था। बाद में जब मुझे उसकी ज़रूरत पड़ी, तो मुझे अफ़सोस हुआ कि मैंने ध्यान से सुना क्यों नहीं। यहीं पर आपको समझ आएगा कि why active listening matters कितना ज़्यादा है।

ये सिर्फ़ इसलिए ज़रूरी नहीं है कि आप जानकारी हासिल करें, बल्कि इसलिए भी कि आप लोगों से बेहतर तरीके से जुड़ पाएं। जब आप किसी को पूरी तरह से सुनते हैं, तो आप उसे ये दिखाते हैं कि ‘मैं तुम्हारी परवाह करता हूँ।’ यह चीज़ रिश्तों को बहुत मज़बूत बनाती है, चाहे वो घर पर आपके परिवार वाले हों, स्कूल में आपके दोस्त हों, या ऑफिस में आपके सहकर्मी।  मैंने अपने इतने सालों के अनुभव में ये साफ-साफ देखा है कि जो लोग ध्यान से सुनते हैं, उन्हें हर जगह ज़्यादा पसंद किया जाता है और उन पर ज़्यादा भरोसा भी किया जाता है।

दूसरा बड़ा कारण why active listening matters का ये है कि इससे गलतफ़हमियां कम होती हैं। सोचिए, अगर डॉक्टर आपकी बात ठीक से न सुनें और आपको गलत दवाई दे दें, तो क्या होगा? बहुत बड़ी गड़बड़ हो जाएगी, है ना? ऐसे ही, रोज़मर्रा की ज़िंदगी में भी जब हम ध्यान से नहीं सुनते, तो अक्सर गलत बातें समझ लेते हैं, जिससे छोटे-मोटे झगड़े या दिक्कतें पैदा हो जाती हैं। जब आप सक्रिय होकर सुनते हैं, तो आप बातों को सही तरीके से समझते हैं, जिससे काम भी सही होता है और रिश्ते भी खराब नहीं होते।

और एक और बात, सक्रिय सुनना आपको ज़्यादा स्मार्ट बनाता है। जब आप दूसरों की बातें ध्यान से सुनते हैं, तो आपको नई-नई चीज़ें सीखने को मिलती हैं। आप दूसरों के अनुभवों से सीखते हैं, उनकी गलतियों से सीखते हैं, और उनके अच्छे विचारों से भी सीखते हैं। मैंने अपने क्लाइंट्स से और अपनी टीम के लोगों से बहुत कुछ सीखा है, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मैंने उन्हें ध्यान से सुना। ये एक ऐसी शक्ति है जो आपको लगातार बेहतर बनाती रहती है।

तो देखा आपने, क्यों सक्रिय सुनना इतना ज़रूरी है? ये सिर्फ़ एक अच्छी आदत नहीं, बल्कि एक ऐसी कला है जो आपकी ज़िंदगी को हर मायने में बेहतर बना सकती है। अब जब हम ये समझ गए हैं कि यह इतना महत्वपूर्ण क्यों है। 

active listening skills

दोस्तों, अब हम बात करेंगे कि सक्रिय सुनने के लिए कौन सी स्किल्स (active listening skills) ज़रूरी होती हैं। इसे ऐसे समझिए जैसे क्रिकेट खेलने के लिए आपको बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग, तीनों आनी चाहिए। सिर्फ़ एक चीज़ जानने से काम नहीं चलता। मैंने अपने इतने सालों के करियर में बहुत से लोगों को इस बारे में सिखाया है, और मुझे पता है कि ये कोई एक दिन का काम नहीं, बल्कि कुछ ख़ास हुनर हैं जिन्हें आपको हर दिन थोड़ा-थोड़ा करके निखारना होता है।

सबसे पहली और सबसे ज़रूरी स्किल है पूरा ध्यान देना। जब कोई आपसे बात कर रहा हो, तो अपनी आँखें उसकी तरफ़ रखें, और कोशिश करें कि आपका दिमाग कहीं और न भटक जाए। जैसे, अगर आपका दोस्त आपको अपनी नई साइकिल के बारे में बता रहा है, तो आप फ़ोन में गेम खेलने के बजाय उसकी बात को ध्यान से सुनें।  मैंने देखा है कि जब मैं क्लाइंट मीटिंग में सिर्फ़ उनकी बात पर पूरा ध्यान देता हूँ, तो मुझे वो सारी ज़रूरी जानकारी मिल जाती है जो शायद वे सीधे-सीधे नहीं बता रहे होते।

दूसरी स्किल है सवाल पूछना। इसका मतलब ये नहीं कि आप हर बात पर सवाल पूछें, बल्कि सही समय पर सही सवाल पूछें। जैसे, अगर कोई आपको बताए कि उसे आज स्कूल में मज़ा नहीं आया, तो आप पूछ सकते हैं, “क्यों? क्या हुआ?” या “तुम्हें कैसा महसूस हुआ?” ये सवाल दिखाते हैं कि आप उसकी बात को समझने की कोशिश कर रहे हैं। मेरे अनुभव में, सही सवाल पूछने से सामने वाला और खुल कर बात करता है, और आप उसकी समस्या को और बेहतर तरीके से समझ पाते हैं।

तीसरी स्किल है बात को दोहराना या सारांश बताना। कभी-कभी जब कोई अपनी बात पूरी कर ले, तो आप उसकी कही बातों को अपने शब्दों में छोटा करके दोहरा सकते हैं। जैसे, “तो, अगर मैं सही समझ रहा हूँ, तो तुम कहना चाहते हो कि…” ये बताता है कि आपने उसकी बात को ध्यान से सुना और समझा है। मैंने कई बार मीटिंग्स में इस तकनीक का इस्तेमाल किया है और इससे गलतफ़हमियाँ दूर होती हैं, और यह भी पक्का हो जाता है कि हम दोनों एक ही बात पर हैं।

चौथी स्किल है धैर्य रखना और बीच में न टोकना। ये शायद सबसे मुश्किल होता है, है ना? जब कोई बात कर रहा हो, तो अक्सर हमारा मन करता है कि हम अपनी बात बोल दें या उसे बीच में ही टोक दें। पर सक्रिय सुनने के हुनर में यह बहुत ज़रूरी है कि आप सामने वाले को अपनी बात पूरी करने दें। उसे बोलने दें, भले ही आपको लगे कि आपको जवाब पता है। मेरा मानना है कि जब आप किसी को बिना टोके सुनते हैं, तो आप उसे सम्मान देते हैं और वह भी आपकी बात को ज़्यादा ध्यान से सुनता है।

ये सारी active listening skills एक-दूसरे से जुड़ी हुई हैं। अगर आप इन पर काम करेंगे, तो आप देखेंगे कि कैसे आपकी बातचीत बेहतर होती है, आपके रिश्ते मज़बूत होते हैं, और आप हर चीज़ को ज़्यादा गहराई से समझने लगते हैं। 

active listening techniques

अब हम उन तरीकों की बात करेंगे जिनसे आप सक्रिय सुनने की तकनीकों (active listening techniques) को अपनी आदत बना सकते हैं। इसे ऐसे समझो जैसे कोई नया खेल खेलना सीखना हो। आप एक बार में तो सब कुछ नहीं सीख जाते, पर कुछ खास ट्रिक्स होती हैं जिनसे आप धीरे-धीरे माहिर बन जाते हैं। मुझे याद है, जब मैं पहली बार क्लाइंट डील्स के लिए गया था, तो मैं सिर्फ़ बोलने पर ज़ोर देता था। पर जब मैंने सक्रिय सुनने की कुछ खास तकनीकों को अपनाया, तो जादू हो गया। 

पहली तकनीक है ‘पूरी तरह से ध्यान देना’। इसका मतलब है कि जब कोई आपसे बात कर रहा हो, तो अपना फ़ोन, लैपटॉप या कोई भी ऐसी चीज़ जो आपका ध्यान भटकाए, उसे दूर रख दें। उसकी आँखों में देखें और यह दिखाएं कि आप उसे सुन रहे हैं। जैसे, अगर आपकी मम्मी आपको कोई कहानी सुना रही हैं, तो आप इधर-उधर देखने के बजाय उनकी तरफ़ देखें और उनकी बात सुनें।  मेरे सालों के अनुभव में मैंने देखा है कि जब आप ऐसा करते हैं, तो सामने वाला भी ज़्यादा खुल कर बात करता है, क्योंकि उसे लगता है कि आप उसकी परवाह करते हैं।

दूसरी तकनीक है ‘पुष्टि करना’। इसका मतलब है कि जब सामने वाला बात कर रहा हो, तो आप बीच-बीच में छोटे-छोटे शब्द बोलें जैसे ‘अच्छा’, ‘हाँ’, ‘हम्म’ या हल्के से सिर हिलाएं। इससे उसे पता चलता है कि आप सुन रहे हैं और समझ रहे हैं। लेकिन ध्यान रहे, बहुत ज़्यादा हाँ-हूँ नहीं करना, वरना वो भी डिस्टर्ब हो सकता है। 

तीसरी और बहुत असरदार तकनीक है ‘बात को दोहराना या संक्षेप में बताना’। जब सामने वाला अपनी बात पूरी कर ले, तो आप उसकी कुछ बातों को अपने शब्दों में दोहरा सकते हैं। जैसे, अगर आपका दोस्त कहे, “आज मैं स्कूल से आते हुए गिर गया और मेरी चोट लग गई,” तो आप कह सकते हैं, “ओह! तो तुम गिर गए और तुम्हें चोट लग गई, कैसा महसूस हो रहा है?” यह सक्रिय सुनने की तकनीकों में से एक है जो यह सुनिश्चित करती है कि आपने उसकी बात को ठीक से समझा है। मैंने कई बार जटिल मीटिंग्स में इस तकनीक का इस्तेमाल किया है, और इससे गलतफहमी की गुंजाइश खत्म हो जाती है।

चौथी तकनीक है ‘भावनाओं को समझना’। कभी-कभी लोग सिर्फ़ शब्दों से नहीं, बल्कि अपनी आवाज़ के तरीके या चेहरे के हाव-भाव से भी बहुत कुछ कह जाते हैं। एक अच्छे लिसनर को ये सब समझना आता है। अगर कोई कहे, ‘मैं ठीक हूँ,’ पर उसकी आवाज़ में उदासी हो, तो आप सिर्फ़ शब्दों पर नहीं, उसकी भावना पर भी ध्यान दें। मेरे प्रोफेशनल करियर में, लोगों की अनकही बातों को समझना मुझे कई बार सही रास्ते पर ले गया है।

ये सारी active listening techniques ऐसी हैं जिन्हें आप रोज़ थोड़ा-थोड़ा करके सीख सकते हैं। ये आपको सिर्फ़ सुनने वाला नहीं बनातीं, बल्कि एक ऐसा व्यक्ति बनाती हैं जिस पर लोग भरोसा कर सकें और जिसके साथ अपनी बातें बांट सकें।

examples of active listening 

अब हम उन पलों पर ध्यान देंगे जहाँ सक्रिय सुनने के उदाहरण (examples of active listening) देखने को मिलते हैं। अब तक हमने समझा कि सक्रिय सुनना क्या है, इसकी ज़रूरत क्यों है और इसे कैसे अपनाया जाता है। लेकिन जब तक हम इसे असली हालात में नहीं देखेंगे, तब तक इसकी अहमियत पूरी तरह समझ नहीं आएगी। मुझे याद है, एक बार मेरी एक नए ग्राहक के साथ बैठक थी और मैं अपनी बात कहने में इतना लीन था कि उसकी बातों पर ठीक से ध्यान ही नहीं दे रहा था। लेकिन जैसे ही मैंने उसकी बातों को पूरी एकाग्रता से सुनना शुरू किया और उसकी ज़रूरतों पर ध्यान केंद्रित किया, पूरी बातचीत की दिशा ही बदल गई। यही वो क्षण था जब मैंने सक्रिय सुनने के असली असर को महसूस किया।

पहला उदाहरण तब सामने आता है जब आपका कोई करीबी दोस्त परेशान होता है और आप उसकी बात सुनते हैं। मान लीजिए, वह कहता है, “आज मेरा मन नहीं लग रहा है।” अगर आप बस इतना कह दें, “ओह, ठीक है,” तो यह सिर्फ़ सतही प्रतिक्रिया होगी—यानी निष्क्रिय सुनना। लेकिन अगर आप उसकी आंखों में देखकर गंभीरता से पूछते हैं, “क्या हुआ? तुम परेशान लग रहे हो, मुझसे बात करो,” और फिर बिना बीच में टोके पूरी बात ध्यान से सुनते हैं, तो यही सक्रिय सुनना कहलाता है। इससे आपके दोस्त को न केवल यह महसूस होगा कि आप उसकी फिक्र करते हैं, बल्कि वो आप पर भरोसा भी कर पाएगा। मेरा खुद का अनुभव कहता है कि जब किसी को खुलकर अपनी बात कहने का मौका मिलता है, तो उसका आधा तनाव वैसे ही कम हो जाता है।

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दूसरा उदाहरण है ऑफिस में टीम मीटिंग के दौरान। मान लीजिए, आपकी टीम का एक साथी कोई नया आइडिया बता रहा है। अगर आप बस अपना फ़ोन देखते रहें या अपने अगले काम के बारे में सोचते रहें, तो आप उसे सुन नहीं रहे हैं। पर अगर आप उसकी बात ध्यान से सुनें, बीच-बीच में सिर हिलाकर या ‘हम्म’ कहकर बताएं कि आप सुन रहे हैं, और फिर उससे पूछें, “तो तुम्हारा मतलब है कि हम इस नए तरीके से काम कर सकते हैं, है ना?” ये सक्रिय सुनने का एक बेहतरीन उदाहरण है जो दिखाता है कि आप उसकी बात को समझ रहे हैं और उसे महत्व दे रहे हैं। मेरे करियर में ऐसे ही सक्रिय सुनने से कई मुश्किल प्रोजेक्ट्स को सही दिशा मिली है।

तीसरा उदाहरण है किसी बहस या झगड़े के दौरान। ये शायद सबसे मुश्किल होता है, पर सबसे ज़्यादा ज़रूरी भी। जब दो लोग किसी बात पर असहमत होते हैं, तो अक्सर वे एक-दूसरे को सुनते नहीं, बस अपनी बात रखते हैं। लेकिन, अगर एक व्यक्ति शांत होकर दूसरे की पूरी बात सुने, उसकी भावनाओं को समझने की कोशिश करे, और फिर कहे, “मैं समझ गया कि तुम इस बात पर गुस्सा हो, क्योंकि तुम्हें लगता है कि…” तो यह सक्रिय सुनने का एक शक्तिशाली उदाहरण है। इससे माहौल शांत होता है और समस्या का हल निकलने की गुंजाइश बढ़ जाती है। मैंने कई बार देखा है कि सक्रिय सुनने से बड़े-बड़े झगड़े भी सुलझ जाते हैं।

इन सभी examples of active listening से यह साफ़ हो जाता है कि यह केवल सुनने की आदत नहीं है, बल्कि एक ऐसी प्रभावशाली कला है जो हमारे रिश्तों में गहराई लाती है और हमें ज्यादा संवेदनशील और समझदार बनाती है। जब आप इन उदाहरणों को अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में अपनाते हैं, तो आप महसूस करेंगे कि सामने वाले से बेहतर जुड़ाव बनने लगा है और संवाद पहले से कहीं अधिक असरदार हो गया है। यही सक्रिय सुनने की असली ताकत है, जो धीरे-धीरे आपके हर रिश्ते में सकारात्मक बदलाव ला सकती है। 

conclusion

तो दोस्तों, हमारी यह बातचीत अब अपने आखिरी पड़ाव पर आ पहुँची है। हमने देखा कि सक्रिय सुनना (active listening) सिर्फ़ कानों से सुनना नहीं है, बल्कि यह दिल और दिमाग से जुड़ने की एक कला है। हमने समझा कि यह क्या होता है, क्यों इतना ज़रूरी है, और इसे अपनी ज़िंदगी में कैसे अपनाया जा सकता है। मुझे उम्मीद है कि मेरे अनुभव और जो तरीके मैंने आपको बताए हैं, वे आपको इस सफ़र में ज़रूर काम आएंगे।

मुझे याद है, जब मैंने पहली बार सक्रिय सुनने की अहमियत को समझा था, तो मेरी ज़िंदगी के कई पहलू बेहतर होने लगे थे। मेरे रिश्ते सुधरे, मैं अपने काम में ज़्यादा कामयाब हुआ, और सबसे बड़ी बात, मुझे लोगों को ज़्यादा गहराई से समझने का मौका मिला।  ये कोई ऐसी चीज़ नहीं है जिसे आप एक दिन में सीख जाएं, बल्कि ये एक लगातार चलने वाली प्रैक्टिस है, जैसे रोज़ सुबह उठकर कसरत करना।

अगर आप चाहते हैं कि लोग आपको सिर्फ़ सुनें नहीं, बल्कि आपको समझें और आप पर भरोसा करें, तो सक्रिय सुनने की आदत को अपनाना बहुत ज़रूरी है। यह आपको एक बेहतर दोस्त, एक बेहतर सहकर्मी, एक बेहतर लीडर और सबसे बढ़कर, एक बेहतर इंसान बनाएगा। यह आपको वो शक्ति देगा जिससे आप दूसरों के अनुभवों से सीख सकें और अपनी ज़िंदगी में कम गलतियाँ करें।

तो मेरी आपसे बस यही गुज़ारिश है कि आज से ही इस आदत को अपनी ज़िंदगी में शामिल करें। शुरुआत छोटी-छोटी बातों से करें – अपने परिवार के लोगों को गौर से सुनें, अपने दोस्तों की बातों पर पूरा ध्यान दें, और अपनी प्रोफेशनल लाइफ में भी इस ख़ूबी का इस्तेमाल करें। आप खुद देखेंगे कि कैसे धीरे-धीरे आपकी दुनिया और भी ज़्यादा बेहतर होती जाएगी।

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