Introduction
मुझे याद है, कुछ साल पहले की बात है, मैं एक मीटिंग में बैठा था। मुझे अपनी बात रखनी थी, जो बहुत ज़रूरी थी, पर जैसे ही मेरी बारी आई, शब्द ही नहीं निकल रहे थे। हाथ-पैर फूल गए, आवाज़ काँप रही थी और जो कहना था, वो सब दिमाग़ में ही रह गया। मीटिंग ख़त्म हुई और मैं सोचता रहा, ‘यार, मैं इतना अच्छा आइडिया लेकर गया था, पर बता क्यों नहीं पाया। उस दिन मुझे समझ आया कि सिर्फ़ आइडिया होना काफ़ी नहीं है, उसे सही ढंग से पेश करना भी आना चाहिए।
कभी-कभी लगता है कि ज़िंदगी में सबसे ज़्यादा काम आने वाली चीज़ों में से एक है communication skills kya hai hindi में ये समझना और उसे अपनी ज़िंदगी में उतारना। ये सिर्फ़ ऑफ़िस मीटिंग्स की बात नहीं है, ये तो हर जगह है – घर में मम्मी-पापा से बात करने से लेकर दोस्तों के साथ मस्ती करने तक। मैंने ख़ुद अपनी आँखों से देखा है कि कैसे अच्छी कम्युनिकेशन स्किल्स वाले लोग भीड़ में भी अलग चमकते हैं, और कैसे सिर्फ़ सही तरीक़े से अपनी बात कहने से बड़े-बड़े मसले हल हो जाते हैं। मुझे उस दिन एक बात और समझ आई कि ये कोई जन्मजात गुण नहीं है, इसे सीखा जा सकता है, ठीक वैसे ही जैसे साइकिल चलाना या खाना बनाना सीखते हैं।
अगर आप भी मेरी तरह कभी सोचते हैं कि ‘काश मैं अपनी बात और बेहतर तरीक़े से कह पाता’ या ‘सामने वाले को मेरी बात समझ क्यों नहीं आती’, तो ये ब्लॉग पोस्ट आपके लिए ही है। इसमें हम सिर्फ़ किताबी बातें नहीं करेंगे, बल्कि मैं आपको अपने सालों के अनुभव और कुछ प्रैक्टिकल तरीक़ों से बताऊंगा कि अगर आप चाहते हैं कि आपकी बात सामने वाले के दिल और दिमाग़ तक सीधी पहुँचे, तो ज़रूरी है कि आप अपनी कम्युनिकेशन स्किल्स को समझें। आज हम जानेंगे कि communication skills kya hai hindi mein, इसे कैसे पहचाना जा सकता है और इसे रोज़मर्रा की ज़िंदगी में कैसे बेहतर बनाया जाए ताकि आपकी बात सिर्फ सुनी ही नहीं, बल्कि समझी भी जाए। मेरा यक़ीन मानिए, ये आर्टिकल पढ़ने के बाद आपको लगेगा कि बातचीत करना सिर्फ़ ज़रूरी नहीं, बल्कि मज़ेदार भी हो सकता है।
communication skills kya hote hain
अगर मैं आपसे पूछूं कि communication skills kya hote hain, तो शायद आप सोचेंगे कि ये तो बस बातें करना होता है, पर सच कहूँ तो, ये उससे कहीं ज़्यादा है। मुझे याद है जब मैं छोटा था, तब मुझे लगता था कि जो बच्चा क्लास में सबसे ज़्यादा बोलता है, वही सबसे अच्छा कम्युनिकेटर है। लेकिन बड़े होने पर और इतने सालों तक लोगों से मिलते-जुलते हुए, मुझे समझ आया कि अच्छी बातचीत का मतलब सिर्फ़ बोलना नहीं होता। ये एक ऐसा जादू है जिससे आप अपनी बात दूसरों तक ठीक वैसे ही पहुँचा पाते हैं, जैसे आप चाहते हैं। और हाँ, ये जादू कोई भी सीख सकता है, चाहे वो आठ साल का बच्चा हो या अस्सी साल का बुज़ुर्ग।
जैसे, मान लो आप अपनी मम्मी से अपनी पसंदीदा चॉकलेट माँगना चाहते हो। अगर आप बस रोने लगो या चिल्लाओ, तो शायद मम्मी को समझ न आए कि आपको क्या चाहिए। लेकिन अगर आप मुस्कुराते हुए साफ़-साफ़ कहो, “मम्मी, मुझे वो लाल वाली चॉकलेट चाहिए,” तो मम्मी तुरंत समझ जाएँगी। यही तो है बातचीत का कमाल। जब हम अपनी बात को ऐसे कहें कि सामने वाला उसे समझ भी ले और उसे अच्छा भी लगे, तो समझो आपने ये हुनर सीख लिया।
मैंने अपने करियर में हज़ारों लोगों से बात की है – बच्चों से लेकर बड़े-बड़े बिज़नेसमैन तक। मैंने देखा है कि जो लोग अपनी बात अच्छे से कह पाते हैं, उनकी दोस्ती भी अच्छी होती है, वो स्कूल में भी अच्छा करते हैं और बड़े होकर अपनी जॉब में भी आगे बढ़ते हैं। मुझे ये बात पूरी तरह से समझ आ गई है कि जब हम किसी को कुछ समझाते हैं और वो सामने वाला उसे पूरी तरह से समझ जाता है, तब हमें कितनी खुशी मिलती है। यही तो बताता है कि communication skills kya hote hain असल में। ये सिर्फ़ बोलना नहीं, बल्कि सामने वाले की बात सुनना और समझना भी होता है।
क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप किसी दोस्त से कोई सीक्रेट बात शेयर करते हैं, तो आप उसे कैसे बताते हैं ताकि वो आपकी बात को समझे और आपके साथ जुड़ाव महसूस करे। या जब कोई आपको कहानी सुनाता है, तो आप उसे ध्यान से क्यों सुनते हैं। ये सब कम्युनिकेशन स्किल्स के ही अलग-अलग हिस्से हैं।
communication skills ke main prakar
पिछली बार हमने बात की थी कि बातचीत का हुनर क्या होता है। अब ज़रा सोचते हैं कि ये हुनर कितने तरह का हो सकता है। क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम किसी से बात करते हैं, तो वो सिर्फ़ मुँह से बोलने तक ही सीमित नहीं होता। जब मैंने पहली बार ये सब समझना शुरू किया था, तब मुझे भी लगा था कि बस बोल दिया, हो गई बात। लेकिन जैसे-जैसे मैंने हज़ारों लोगों से काम किया, उनसे बात की, मुझे समझ आया कि communication skills ke main prakar सिर्फ़ एक या दो नहीं होते, बल्कि ये कई तरह के होते हैं। और सबसे कमाल की बात ये है कि हम हर रोज़ इनमें से किसी न किसी का इस्तेमाल कर ही रहे होते हैं, बस हमें पता नहीं चलता।
जैसे मान लो, आप अपने दोस्त को हाथ हिलाकर ‘बाय’ करते हो, या सिर हिलाकर ‘हाँ’ बोलते हो। इसमें आपने कुछ बोला नहीं, है ना। लेकिन सामने वाले को आपकी बात समझ आ गई। यही तो है बातचीत का एक और तरीक़ा। या फिर जब आप कोई कहानी सुनते हो, तो सिर्फ़ आवाज़ पर ध्यान नहीं देते, बल्कि कहानी सुनाने वाले के चेहरे के हाव-भाव और उसके हाथ-पैरों की हरकतों को भी देखते हो। ये सब कुछ ‘कम्युनिकेशन’ ही है। मेरे अनुभव में, मैंने देखा है कि जो लोग इन सभी तरीकों को अच्छे से इस्तेमाल करना जानते हैं, वो सच में अपनी बात को बहुत मज़ेदार और असरदार बना पाते हैं।
तो आइए आसान शब्दों में समझते हैं कि communication skills ke main prakar क्या हैं और ये किस तरह से हमारी बातचीत को और ज़्यादा प्रभावशाली बना सकते हैं।
बोलकर बात करना (Verbal Communication): ये वो तरीक़ा है जब हम अपनी आवाज़ से कुछ कहते हैं। जैसे, फ़ोन पर बात करना, अपने दोस्तों से गप्पे मारना, या स्कूल में अपनी टीचर को जवाब देना। ये सबसे आम तरीक़ा है और इसी से हम अपनी बातों को शब्दों का रूप देते हैं।
बिना बोले बात करना (Non-verbal Communication): इसमें हम बिना कुछ बोले अपनी बात कहते हैं। जैसे, आपका चेहरा क्या कह रहा है (खुश हैं, दुखी हैं), आपके हाथ कैसे हिल रहे हैं (इशारा कर रहे हैं), या आप कैसे बैठे हैं (सीधे या झुके हुए)। मैंने कई बार देखा है कि बिना बोले की गई बात, बोलने से भी ज़्यादा असरदार होती है। कभी-कभी तो लोग जो बोलते हैं, उससे ज़्यादा उनका हाव-भाव बता देता है कि उनके मन में क्या चल रहा है।
लिखकर बात करना (Written Communication): जब हम अपनी बात कागज़ पर या फ़ोन पर लिखकर बताते हैं, तो वो लिखित कम्युनिकेशन होता है। जैसे, अपने दोस्त को मैसेज भेजना, होमवर्क करना, या पापा को चिट्ठी लिखना। मैंने ख़ुद सैकड़ों ईमेल और मैसेज लिखे हैं और समझा है कि लिखे हुए शब्दों में भी बहुत ताक़त होती है, अगर उन्हें सही से लिखा जाए।
सुनकर बात समझना (Listening): ये शायद सबसे ज़रूरी और अक्सर नज़रअंदाज़ किया जाने वाला तरीक़ा है। सिर्फ़ बोलना ही नहीं, बल्कि सामने वाले की बात को ध्यान से सुनना और समझना भी बहुत ज़रूरी है। अगर हम सामने वाले की बात सुनेंगे ही नहीं, तो जवाब क्या देंगे? मैंने ये बात अपनी ज़िंदगी में गांठ बांध ली है कि अगर आप किसी की बात को ध्यान से सुनते हैं, तो वो आपको बहुत पसंद करेगा और आप उस पर भरोसा भी कर पाएंगे।
ये सभी communication skills ke main prakar मिलकर हमारी बातचीत को पूरा करते हैं। कोई भी एक प्रकार अकेला पूरा नहीं है। जब हम इन सबको मिलाकर इस्तेमाल करते हैं, तभी हम असली जादूगर बन पाते हैं। लेकिन क्या आपको पता है कि इन सभी तरीक़ों में कुछ ऐसी बातें भी होती हैं जो हमें और अच्छा कम्युनिकेटर बना सकती हैं।
communication skills ke popular tools
हमने अभी तक बातचीत के अलग-अलग तरीकों के बारे में बात की, जैसे बोलकर, सुनकर, लिखकर या बिना बोले। लेकिन क्या आपको पता है कि इन सभी तरीकों को और बेहतर बनाने के लिए कुछ ‘टूल’ भी होते हैं। जब मैंने पहली बार कम्युनिकेशन की दुनिया में कदम रखा था, तब मुझे लगा था कि बस बोलना आता है तो हो गया काम। लेकिन इतने सालों में मैंने सीखा है कि कुछ ख़ास चीज़ें हैं, जो हमारी बातचीत को और भी शानदार बना देती हैं। ये बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे एक कलाकार के पास अलग-अलग रंग और ब्रश होते हैं, वैसे ही हमारे पास भी कुछ ऐसे communication skills ke popular tools होते हैं जिनसे हम अपनी बात को और ज़्यादा रंगीन और असरदार बना सकते हैं।
ज़रा सोचिए, जब आप अपने किसी दोस्त को अपनी कहानी सुनाते हैं, तो आप सिर्फ़ शब्दों का ही इस्तेमाल नहीं करते, है ना। आप अपनी आवाज़ को कभी तेज़ करते हैं, कभी धीरे, कभी कुछ मज़ेदार बोलने पर हँसते हैं, और कभी-कभी तो आप अपनी आँखों से भी कुछ कह जाते हैं। ये सब ‘टूल’ ही हैं जो आपकी कहानी को जानदार बनाते हैं। मैंने ख़ुद ये सब इस्तेमाल किया है, और मुझे पता है कि ये कितने काम के हैं।
तो, आइए आसान भाषा में समझते हैं कि communication skills ke popular tools कौन-कौन से हैं।
आँखों से बात करना (Eye Contact): जब आप किसी से बात करते हैं, तो उसकी आँखों में देखना बहुत ज़रूरी है। इससे सामने वाले को लगता है कि आप उसकी बात ध्यान से सुन रहे हैं और उसे आपकी बातों पर भरोसा होता है। मैंने देखा है कि जब लोग आँखों से आँखें मिलाकर बात करते हैं, तो उनकी बातों में एक अलग ही दम आ जाता है। ये दिखाता है कि आप सच बोल रहे हैं और आप कॉन्फिडेंट हैं।
चेहरे के हाव-भाव (Facial Expressions): बिना कुछ बोले भी हमारा चेहरा कई बार हमारी भावनाएं साफ़ तौर पर दिखा देता है। जब आप खुश होते हैं तो आपका चेहरा मुस्कुराता है, दुखी होते हैं तो उदास दिखता है। अपने चेहरे के हाव-भाव को अपनी बात के हिसाब से इस्तेमाल करना एक बहुत ही कमाल का टूल है। अगर मैं किसी को कोई मज़ेदार कहानी सुना रहा हूँ और मेरा चेहरा उदास है, तो कोई मज़ा नहीं आएगा, है ना।
शरीर की भाषा (Body Language): आप कैसे खड़े हैं, कैसे बैठे हैं, आपके हाथ क्या कर रहे हैं – ये सब आपकी शरीर की भाषा है। अगर आप किसी से बात करते हुए हाथ बाँधकर खड़े हैं, तो हो सकता है सामने वाले को लगे कि आप बात करना नहीं चाहते। लेकिन अगर आप खुले हाथों से और सीधे खड़े होकर बात करते हैं, तो सामने वाले को लगता है कि आप उससे दोस्ती करना चाहते हैं। मैंने कई बार लोगों को सिर्फ़ उनकी बॉडी लैंग्वेज से ही समझ लिया है कि वो अंदर ही अंदर क्या महसूस कर रहे हैं।
आवाज़ का उतार-चढ़ाव (Tone of Voice): सिर्फ़ यह मायने नहीं रखता कि आप क्या कह रहे हैं, बल्कि यह भी उतना ही जरूरी होता है कि आप उसे किस तरीके से कह रहे हैं। कई बार एक ही शब्द का मतलब अलग हो सकता है, बस उसे कहने के लहजे पर निर्भर करता है। जैसे अगर आप “ठीक है” को गुस्से में बोलें, तो बात का मतलब बदल जाता है, लेकिन वही बात प्यार से कहें, तो असर कुछ और होता है। अपनी आवाज़ को सही वक्त पर ऊँचा या धीमा करना, उसमें भाव या उत्साह लाना – ये सब मिलकर आपकी बात को ज़्यादा असरदार बना देते हैं।
सवाल पूछना और सुनना (Asking Questions and Listening Actively): ये सबसे ताक़तवर ‘टूल’ है। जब आप किसी से सवाल पूछते हैं, तो आप उसे ये दिखाते हैं कि आप उसकी बात में दिलचस्पी ले रहे हैं। और जब आप ध्यान से सुनते हैं, तो आप सामने वाले को ये एहसास कराते हैं कि उसकी बात आपके लिए मायने रखती है। मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत कुछ सीखा है, सिर्फ़ इसलिए क्योंकि मैंने दूसरों से सवाल पूछे और उन्हें ध्यान से सुना।
ये सभी communication skills ke popular tools आपको एक बेहतरीन कम्युनिकेटर बनने में मदद करेंगे। लेकिन इन ‘टूल्स’ को सिर्फ़ जानना ही काफ़ी नहीं है, इन्हें रोज़ इस्तेमाल करना भी ज़रूरी है। तो क्या आप तैयार हैं इन ‘टूल्स’ को अपनी बातचीत का हिस्सा बनाने के लिए और अपनी हर बात को एक यादगार अनुभव बनाने के लिए।
verbal vs non verbal communication
हमने अभी तक बातचीत के जादू और उसके अलग-अलग औज़ारों की बात की। अब एक बहुत ही मज़ेदार चीज़ समझते हैं। क्या आपने कभी सोचा है कि जब हम किसी से बात करते हैं, तो क्या सिर्फ़ हमारे शब्द ही काम करते हैं। या कुछ और भी होता है। मुझे याद है, एक बार मैं एक छोटे बच्चे से मिला था, जो बोल नहीं पाता था। लेकिन वो अपनी आँखों, अपने हाथों और अपनी मुस्कान से मुझसे बहुत कुछ कह गया। उस दिन मुझे ये बात और गहराई से समझ में आई कि verbal और non-verbal communication चाहे अलग-अलग हों, लेकिन जब ये साथ आते हैं, तो हमारी बात को और ज़्यादा असरदार बना देते हैं।
ज़रा सोचिए, जब आपकी मम्मी आपसे पूछती हैं, “खाना खा लिया।”, और आप बस सिर हिला देते हैं ‘हाँ’ में। आपने कुछ बोला नहीं, लेकिन मम्मी को आपकी बात समझ आ गई। ये तो हुआ बिना बोले बात करना। और जब आप बोलते हैं, “हाँ, मैंने खाना खा लिया है।”, तो ये बोलकर बात करना हुआ। ये दोनों ही तरीक़े अपनी जगह सही और ज़रूरी हैं। मैंने इतने सालों में हज़ारों लोगों से बात की है, और मैंने देखा है कि जो लोग इन दोनों को अच्छे से इस्तेमाल करना जानते हैं, उनकी बात में ज़्यादा वज़न होता है और लोग उन्हें ज़्यादा पसंद करते हैं।
तो चलिए, आसान शब्दों में समझते हैं कि verbal vs non verbal communication में क्या फ़र्क है।
वर्बल कम्युनिकेशन (Verbal Communication): जब हम किसी से अपनी बात कहने के लिए शब्दों का इस्तेमाल करते हैं और आवाज़ में बोलते हैं, तो उसे वर्बल कम्युनिकेशन कहा जाता है। इसमें हमारी हर वो बात शामिल होती है जो हम ज़ुबान से कहते हैं। जैसे, जब आप फ़ोन पर अपने दोस्त से बात करते हैं, क्लास में किसी सवाल का जवाब देते हैं, या कोई कहानी सुनाते हैं। इसमें आवाज़ का उतार-चढ़ाव, शब्दों का चुनाव, और बोलने का तरीक़ा बहुत मायने रखता है। ये हमें अपनी बातों को साफ़-साफ़ कहने में मदद करता है।
नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन (Non-Verbal Communication): ये वो तरीक़ा है जब हम बिना कुछ बोले अपनी बात कहते हैं। इसमें हमारे चेहरे के हाव-भाव (आप मुस्कुरा रहे हैं या उदास हैं), हमारी आँखों का इशारा (आप किसी की तरफ़ देख रहे हैं या नहीं), हमारे शरीर की हरकतें (आपके हाथ कैसे हिल रहे हैं, आप कैसे बैठे हैं या खड़े हैं), और यहाँ तक कि आपकी आवाज़ का टोन भी शामिल होता है (जो बताता है कि आप गुस्से में हैं या खुश)। मैंने कई बार देखा है कि लोग जो बोलते हैं, उससे ज़्यादा उनका नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन बता देता है कि उनके मन में क्या है। कभी-कभी कोई झूठ बोल रहा होता है, तो उसका शरीर कुछ और ही कह देता है।
सच कहूँ तो, ये दोनों ही तरह की बातचीत एक-दूसरे के बिना अधूरी हैं। सोचिए, अगर कोई आपसे कहे “मैं बहुत खुश हूँ।” लेकिन उसका चेहरा बिलकुल उदास हो, तो क्या आप उसकी कही बात को सच मानेंगे, शायद नहीं। क्योंकि उसके चेहरे के हाव-भाव उसके कहे गए शब्दों से मेल नहीं खा रहे थे। एक बेहतर संचार करने वाला व्यक्ति हमेशा बोलने के तरीके और शरीर की भाषा, दोनों का संतुलन बनाए रखता है। मेरा तो ये मानना है कि अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी बात को पूरी तरह से समझें और आप पर भरोसा करें, तो आपको इन दोनों को एक साथ इस्तेमाल करना सीखना होगा।
तो क्या आप ये सीखने के लिए तैयार हैं कि कैसे हम अपनी बोली हुई बातों को अपने हाव-भाव और शरीर की भाषा से और मज़बूत बना सकते हैं। और कैसे दूसरों के बिना बोले संकेतों को पढ़कर उन्हें और बेहतर तरीके से समझ सकते हैं।
5 factors of effective communication
हमने अब तक बातचीत के जादू को समझा, उसके अलग-अलग तरीकों और औजारों के बारे में जाना। लेकिन क्या आपको पता है कि अच्छी बातचीत सिर्फ़ बोलना या सुनना नहीं होती, बल्कि इसके पीछे कुछ खास बातें होती हैं जो उसे ‘असरदार’ बनाती हैं। मुझे याद है, जब मैं अपनी शुरुआत में था, तब मुझे लगता था कि बस ज़्यादा जानकारी दे दो तो मेरी बात असरदार बन जाएगी। लेकिन इतने सालों में मैंने सीखा है कि अगर आप चाहते हैं कि आपकी बात सीधे दिल तक पहुँचे और लोग उसे समझें, तो कुछ खास बातों का ध्यान रखना पड़ता है। मैंने हज़ारों लोगों से बात करते हुए और उन्हें समझते हुए ये सीखा है कि 5 factors of effective communication ऐसे हैं जो आपकी बातचीत को सच में दमदार बनाते हैं।
ये बिल्कुल वैसे ही हैं जैसे किसी बिल्डिंग को बनाने के लिए मज़बूत नींव की ज़रूरत होती है, वैसे ही हमारी बातचीत को भी मज़बूत बनाने के लिए इन ‘फैक्टर्स’ की ज़रूरत होती है। अगर आप अपने दोस्त को कोई कहानी सुना रहे हैं, और वो बोर हो जाए या उसे समझ ही न आए, तो आपकी कहानी सुनाने का क्या फ़ायदा। इसलिए, ये जानना बहुत ज़रूरी है कि अपनी बात को कैसे कहें कि वो सामने वाले पर असर करे। मेरे अनुभव ने मुझे ये सिखाया है कि जब आप इन बातों का ध्यान रखते हैं, तो आपकी बातें सिर्फ़ सुनी नहीं जातीं, बल्कि समझी भी जाती हैं और उन पर अमल भी किया जाता है।
तो चलिए, आसान शब्दों में समझते हैं कि 5 factors of effective communication कौन-कौन से हैं, जो आपकी बातचीत को असरदार बनाते हैं।
बात साफ़-साफ़ कहना (Clarity): इसका मतलब है कि आप अपनी बात को इतना आसान और सीधा रखें कि सामने वाले को तुरंत समझ आ जाए। जैसे, अगर आपको अपनी मम्मी से पेंसिल चाहिए, तो आप कहेंगे “मम्मी, मुझे पेंसिल चाहिए”, न कि “वो नुकीली चीज़ जो लिखने के काम आती है, वो दे दो।” साफ़ बात कहने से कोई उलझन नहीं होती। मैंने देखा है कि कई बार लोग बहुत ज़्यादा घुमा-फिराकर बात करते हैं और फिर शिकायत करते हैं कि सामने वाले को समझ नहीं आया।
पूरी बात बताना (Completeness): अपनी बात को पूरा बताना भी बहुत ज़रूरी है। अगर आप अपने दोस्त से कहो “कल मिलना”, तो वो सोचेगा “कहाँ मिलना है। कब मिलना है।” जब आप अपनी बात पूरी बताते हैं, तो सामने वाले को सब कुछ अच्छे से समझ आता है और उसे बार-बार सवाल नहीं पूछने पड़ते। मुझे हमेशा लगता है कि आधी-अधूरी जानकारी से तो अच्छा है कि जानकारी दी ही न जाए।
बात सही होना (Correctness): जो भी बात आप कह रहे हैं, वो सही होनी चाहिए। अगर आप ग़लत जानकारी देंगे, तो कोई आप पर भरोसा नहीं करेगा। जैसे, अगर आप अपने दोस्त को बताओ कि स्कूल कल खुला है, जबकि वो बंद है, तो आपका दोस्त आप पर अगली बार भरोसा नहीं करेगा। मैंने हमेशा कोशिश की है कि जो भी जानकारी दूं, वो पूरी तरह से सही हो, क्योंकि यही विश्वसनीयता की पहली सीढ़ी है।
सामने वाले का ध्यान रखना (Consideration): अपनी बात कहने से पहले थोड़ा सोचिए कि आप किससे बात कर रहे हैं। क्या सामने वाला बच्चा है या बड़ा? क्या उसे आपकी बात समझ आएगी? उसकी भावनाओं का ध्यान रखना भी बहुत ज़रूरी है। जैसे, अगर आपका दोस्त उदास है, तो आप उससे मज़ाक नहीं करेंगे। सामने वाले की उम्र, उसकी जानकारी और उसकी भावनाओं का ध्यान रखने से आपकी बात ज़्यादा अच्छे से पहुँचेगी। ये दिखाता है कि आप सामने वाले की परवाह करते हैं।
संक्षेप में बात कहना (Conciseness): अपनी बात को कम शब्दों में कहना भी एक कला है। जब आप कम शब्दों में ज़्यादा बातें कह देते हैं, तो सामने वाले का समय बचता है और उसे आपकी बात याद भी रहती है। जैसे, अगर आपको कहना है “मुझे भूख लगी है”, तो आप यही कहेंगे, न कि “मेरे पेट में अजीब सी हलचल हो रही है और मुझे कुछ खाने का मन कर रहा है।” मैंने पाया है कि जो लोग कम शब्दों में ज़्यादा बात कह पाते हैं, उनकी बातों को लोग ज़्यादा ध्यान से सुनते हैं।
ये 5 factors of effective communication मिलकर आपकी बातों को और भी प्रभावशाली बना देते हैं। जब आप इन सभी चीज़ों का ख्याल रखकर बात करते हैं, तो लोग सिर्फ़ आपकी बात नहीं सुनते, बल्कि उसे समझते हैं, महसूस करते हैं और उस पर भरोसा भी करते हैं।
communication skills kaise improve karein
अभी तक हमने बातचीत के जादू, उसके अलग-अलग तरीकों और उसे असरदार बनाने वाले खास ‘फैक्टर्स’ के बारे में जाना। पर अब सबसे ज़रूरी सवाल आता है। क्या हम इसे सीख सकते हैं। और अगर हाँ, तो communication skills kaise improve karein मुझे याद है जब मैं अपनी शुरुआत में था, तो मैं बहुत शर्मीला था और लोगों से बात करने में झिझकता था। मुझे लगता था कि कुछ लोग जन्म से ही अच्छे वक्ता होते हैं और मैं कभी वैसा नहीं बन पाऊँगा। लेकिन मैंने ये सीखा कि ये कोई ऐसी चीज़ नहीं है जो आपको भगवान देते हैं, बल्कि ये एक हुनर है जिसे कोई भी सीख सकता है और अच्छा बना सकता है, ठीक वैसे ही जैसे हम साइकिल चलाना या गाना गाना सीखते हैं।
मैंने अपनी ज़िंदगी में हज़ारों लोगों को इस हुनर को सीखते और उसमें माहिर होते देखा है। मैंने ख़ुद भी बहुत मेहनत की है और अपनी बातचीत को बेहतर बनाया है। ये कोई एक दिन का काम नहीं है, बल्कि एक मज़ेदार सफ़र है। और इस सफ़र में कुछ छोटे-छोटे कदम हैं जो आपको बहुत आगे ले जा सकते हैं। मेरा पूरा यक़ीन है कि अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे, तो आप भी अपनी बातचीत से लोगों को हैरान कर देंगे।
तो आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि communication skills kaise improve karein ताकि आपकी हर बात एक कमाल का अनुभव बन जाए।
ध्यान से सुनना सबसे जरूरी कदम होता है। जब कोई कुछ कह रहा हो, तो उसकी बात को पूरी तसल्ली से सुनें और बीच में बोलकर उसे न रोकें। इससे सामने वाला महसूस करता है कि उसकी बात को अहमियत दी जा रही है। उसकी बात पूरी होने दें और फिर अपना जवाब दें। जैसे, अगर आपका दोस्त आपको अपनी नई कहानी सुना रहा है, तो बस हाँ-हूँ करने की बजाय, उसकी कहानी को समझने की कोशिश करें। मैंने देखा है कि जो लोग ध्यान से सुनते हैं, लोग उन्हें ज़्यादा पसंद करते हैं और उन पर भरोसा करते हैं।
साफ़ और सीधी बात करें (Speak Clearly and Concisely): अपनी बात को सरल शब्दों में और सीधा कहें। घुमा-फिराकर बात करने से लोग कनफ्यूज़ हो जाते हैं। जैसे, अगर आपको पानी चाहिए, तो सीधे कहें “मुझे पानी चाहिए”, न कि “मेरा गला सूखा हुआ है और मुझे कुछ तरल पदार्थ की ज़रूरत है।” मैंने पाया है कि जितनी साफ़ आपकी बात होगी, उतनी जल्दी सामने वाले को समझ आएगी।
चेहरा और शरीर का इस्तेमाल करें (Use Facial Expressions and Body Language): जब आप बात करें, तो अपने चेहरे और शरीर का भी इस्तेमाल करें। मुस्कुराएँ जब आप खुश हों, सिर हिलाएँ जब आप सहमत हों। जैसे, अगर आप किसी मज़ेदार बात पर हँस रहे हैं, तो आपका चेहरा भी ख़ुशी वाला दिखना चाहिए। ये आपकी बात को और मज़ेदार बनाता है। मैं हमेशा अपनी ट्रेनिंग में लोगों को ये सिखाता हूँ कि आपके शब्द सिर्फ़ 7% काम करते हैं, बाकी 93% आपका नॉन-वर्बल कम्युनिकेशन ही काम करता है!
सवाल पूछें (Ask Questions): जब आप दूसरों से सवाल पूछते हैं, तो ये दिखाता है कि आप उनकी बात में दिलचस्पी ले रहे हैं। इससे सामने वाले को अच्छा महसूस होता है और उसे लगता है कि आप उसे समझ रहे हैं। जैसे, अगर आपका दोस्त आपसे कोई बात कह रहा है, तो आप उससे पूछ सकते हैं, “अच्छा, और क्या हुआ फिर?” ये बातचीत को आगे बढ़ाता है।
रोज़ अभ्यास करें (Practice Regularly): ये किसी भी हुनर को सीखने का सबसे बड़ा राज़ है। रोज़ाना लोगों से बात करें, भले ही वो आपके घर वाले हों या दोस्त। बोलने और सुनने का अभ्यास करते रहें। जैसे, शीशे के सामने खड़े होकर अपनी बात कहने की कोशिश करें, या किसी कहानी को ज़ोर से पढ़ें। मुझे याद है, मैं घंटों शीशे के सामने खड़ा होकर अपनी बातों का अभ्यास करता था, और उसी से मैं आज यहाँ हूँ।
भरोसा रखें (Be Confident): जब आप बात करें तो खुद पर भरोसा रखें। अगर आप अंदर से डरेंगे तो आपकी आवाज़ काँपेगी और सामने वाले को आपकी बात पर भरोसा नहीं होगा। अगर आपको खुद पर भरोसा है, तो आपकी बात में एक अलग ही दम आता है। मैंने हमेशा लोगों को सिखाया है कि अपनी बात पर यक़ीन रखना ही आपको एक अच्छा कम्युनिकेटर बनाता है।
ये सारे तरीके आपकी communication skills kaise improve karein आपकी मदद करेंगे। ध्यान रखें, ये कोई जल्दी पूरी होने वाली चीज़ नहीं है, बल्कि धीरे-धीरे सीखने और समझने की प्रक्रिया है। अगर आप रोज़ थोड़ा समय निकालकर अभ्यास करेंगे, तो आप हर दिन पहले से बेहतर संवाद कर पाएंगे।
professional life me communication skills ka role
अभी तक हमने बातचीत के जादू, उसके अलग-अलग तरीकों, उसे असरदार बनाने वाले ‘फैक्टर्स’ और उसे बेहतर बनाने के तरीकों पर खूब बातें कीं। पर अब एक बहुत ही खास बात करते हैं – ये जो बातचीत का हुनर है, ये हमारी प्रोफेशनल लाइफ में, यानी जब हम बड़े होकर काम करते हैं, तो कितना ज़रूरी होता है। मुझे याद है, जब मैंने पहली जॉब शुरू की थी, तो मैं सोचता था कि बस मुझे अपना काम अच्छे से करना आता है तो सब ठीक है। लेकिन बहुत जल्दी मुझे समझ आ गया कि सिर्फ़ काम आना ही काफ़ी नहीं है, उसे सही तरीक़े से दूसरों को बताना भी उतना ही ज़रूरी है। Professional life mein communication skills ka role इतना बड़ा है कि आप सोच भी नहीं सकते। ये बिल्कुल एक सुपरहीरो की ताकत जैसा है, जो आपको हर मुश्किल से निकलने में मदद करता है।
जैसे, मान लो आप एक बहुत अच्छा खिलौना बनाते हो। लेकिन अगर आप अपने दोस्त को ये बता ही न पाओ कि ये खिलौना कितना कमाल का है, तो क्या कोई उसे खरीदेगा। शायद नहीं, है ना। ठीक ऐसे ही, जब आप बड़े होकर जॉब करते हो, तो चाहे आप कितने भी होशियार क्यों न हों, अगर आप अपनी बात सही से कह नहीं पाते, या दूसरों की बात समझ नहीं पाते, तो बहुत दिक्कत आती है। मैंने अपने 5 साल के करियर में हज़ारों लोगों को देखा है। जो लोग साफ़-साफ़ अपनी बात कह पाते हैं और दूसरों को भी अच्छे से समझते हैं, वे ज़िंदगी में अक्सर आगे बढ़ते हैं। मुझे भरोसा है कि अगर आप भी ये कला सीख लेते हैं, तो आपकी तरक्की की रफ्तार भी ज़रूर तेज़ हो जाएगी।
तो आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि professional life mein communication skills ka role क्या है और ये कैसे आपकी मदद करता है।
जॉब मिलने में मदद (Getting a Job): जब आप इंटरव्यू देने जाते हैं, तो सामने वाले को आपसे बात करके ही पता चलता है कि आप कैसे इंसान हैं। अगर आप अपनी बात साफ़-साफ़ और भरोसे के साथ कह पाते हैं, तो आपको जॉब मिलने के ज़्यादा मौके मिलते हैं। मैंने कई बार ऐसे लोगों को देखा है जिन्हें काम तो आता है, पर इंटरव्यू में ठीक से बोल नहीं पाते और जॉब गंवा देते हैं।
काम को अच्छे से समझना और समझाना (Understanding and Explaining Work): ऑफिस में आपको दूसरों से काम समझना भी होता है और अपना काम दूसरों को समझाना भी होता है। अगर आपकी बातचीत अच्छी है, तो आप अपने बॉस की बात जल्दी समझ जाएँगे और अपने टीम के लोगों को अपना काम आसानी से समझा पाएँगे। इससे काम में कोई गलती नहीं होती और सब कुछ अच्छे से चलता है।
टीम में अच्छे से काम करना (Working Well in a Team): ऑफिस में अकेले काम नहीं होता, सब मिलकर काम करते हैं। जब आप अपनी टीम के लोगों से अच्छे से बात करते हैं, तो आप उनकी मदद कर पाते हैं और वो आपकी मदद करते हैं। इससे टीम में दोस्ती बढ़ती है और काम भी तेज़ी से होता है। मैंने हमेशा देखा है कि जिन टीमों में लोग एक-दूसरे से अच्छे से बात करते हैं, वो ज़्यादा सफल होती हैं।
बॉस से बात करना (Talking to Your Boss): अपने बॉस से सही से बात करना बहुत ज़रूरी है। अगर आपको कुछ पूछना है, या कोई मुश्किल आ रही है, तो उसे सही तरीक़े से बताना चाहिए। अगर आप अच्छे से बात कर पाते हैं, तो बॉस आपकी बात समझेगा और आपकी मदद भी करेगा।
आगे बढ़ना (Getting Promotions): जो लोग अपनी बात को सही तरीक़े से पेश कर पाते हैं, दूसरों को अच्छे से समझा पाते हैं और टीम में सब को साथ लेकर चलते हैं, वो लोग जल्दी तरक्की करते हैं। उनकी बात सुनी जाती है और लोग उन पर भरोसा करते हैं। मैंने कई बार देखा है कि कम्युनिकेशन स्किल्स अच्छी होने से लोग बड़ी-बड़ी पोस्ट पर पहुँच जाते हैं, क्योंकि उनके पास सिर्फ़ काम का ज्ञान नहीं, बल्कि उसे व्यक्त करने का हुनर भी होता है।
मुश्किलें हल करना (Solving Problems): जब काम में कोई दिक्कत आती है, तो बातचीत से ही उसे हल किया जाता है। अगर आप अपनी बात को शांति से और सही तरीक़े से रखते हैं, तो मुश्किलों का हल आसानी से निकल जाता है। बहस करने की बजाय, सही तरीके से अपनी बात रखना आपको एक बेहतर समस्या-समाधान करने वाला बनाता है।
तो देखा आपने, professional life mein communication skills ka role कितना ज़्यादा है। ये सिर्फ़ आपकी नौकरी में ही नहीं, बल्कि आपकी पूरी ज़िंदगी में आपको आगे बढ़ाएगा। ये एक ऐसी सुपरपावर है जिसे अगर आपने सीख लिया, तो कोई भी आपको पीछे नहीं छोड़ सकता।
student life me communication skills kyu zaruri hai
हमने बातचीत के हुनर को बहुत करीब से जाना, उसके औजारों और प्रोफेशनल दुनिया में उसके कमाल देखे। पर क्या आपने कभी सोचा है कि जब आप स्कूल में होते हैं, या कॉलेज में पढ़ते हैं, तब ये बातचीत का हुनर कितना काम आता है। मुझे याद है, जब मैं स्कूल में था, तो कुछ बच्चे ऐसे होते थे जो चुपचाप रहते थे। उन्हें सब आता था, पर जब टीचर कुछ पूछतीं या कोई प्रोजेक्ट होता, तो वे अपनी बात ठीक से कह नहीं पाते थे। उस समय मुझे लगा कि पढ़ाई में अच्छा होना ही सब कुछ है, पर अब इतने सालों का अनुभव बताता है कि student life mein communication skills kyu zaruri hai, ये जानना हर बच्चे के लिए बेहद ज़रूरी है।
ये बिल्कुल ऐसा है जैसे आप क्रिकेट खेल रहे हों और आपको सिर्फ़ बैटिंग आती हो, बॉलिंग नहीं। अगर आपको अपनी बात ठीक से कहनी नहीं आती, या दूसरों की बात समझनी नहीं आती, तो स्कूल में भी आपको बहुत सारी चीज़ों में दिक्कत आ सकती है। मैंने हज़ारों बच्चों को देखा है, जो पढ़ाई में तो होशियार होते हैं, पर अपनी बात को सही ढंग से पेश न कर पाने की वजह से कभी-कभी पीछे रह जाते हैं। मेरा पूरा यक़ीन है कि अगर आप ये हुनर सीख लेंगे, तो आपकी स्टूडेंट लाइफ बहुत आसान और मज़ेदार हो जाएगी।
तो आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि student life mein communication skills kyu zaruri hai और ये कैसे आपके लिए एक सुपरपावर की तरह काम करती हैं।
सवाल पूछने के लिए (To Ask Questions): जब क्लास में कोई बात समझ न आए, तो सवाल करना बहुत जरूरी होता है। लेकिन अगर आप अपने सवाल को साफ़ और ठीक ढंग से नहीं पूछेंगे, तो सामने वाला आपकी बात को समझ नहीं पाएगा। इसलिए, सही तरीके से सवाल करना सीखना भी एक अहम हिस्सा है बेहतर कम्युनिकेशन का। जैसे, अगर आपको मैथ्स का कोई सवाल समझ नहीं आया, और आप टीचर से पूछने में झिझकेंगे, तो वो मुश्किल बनी रहेगी। साफ़-साफ़ सवाल पूछने से आपकी उलझन दूर होती है।
अपनी बात रखने के लिए (To Express Yourself): चाहे वो क्लास में किसी प्रोजेक्ट के बारे में बताना हो, या अपने दोस्त को कोई कहानी सुनानी हो, अपनी बात को अच्छे से कहना बहुत ज़रूरी है। अगर आप अपनी बात सही से नहीं कह पाएँगे, तो लोग आपकी बात नहीं समझेंगे और आपको शायद मनचाहा परिणाम न मिले। मैंने देखा है कि जो बच्चे अपनी बात आत्मविश्वास से रखते हैं, उनकी क्लास में भी ज़्यादा चलती है।
दोस्तों से बातचीत के लिए (For Socializing with Friends): स्कूल और कॉलेज में दोस्त बनाना और उनसे बातें करना भी बहुत ज़रूरी है। अगर आपको अच्छे से बात करनी नहीं आती, तो शायद दोस्त बनाने में मुश्किल हो सकती है। अच्छी बातचीत से दोस्ती गहरी होती है और आप ज़्यादा खुश रहते हैं। मेरे बचपन में मुझे बात करने में थोड़ी झिझक होती थी, और मुझे याद है कि कैसे मैंने अपनी बातचीत बेहतर बनाकर बहुत सारे दोस्त बनाए।
टीचर से बातचीत करना (To Talk to Teachers): स्कूल में टीचर से बात करना एक जरूरी कला है। अगर आपको किसी चीज़ में दिक्कत हो या कोई सवाल पूछना हो, तो अपनी बात को शांति और इज़्ज़त से कहना चाहिए। जब आप अपनी बात साफ़ और अच्छे तरीके से रखते हैं, तो टीचर भी आपकी मदद करने में ज़्यादा सहज महसूस करती हैं। इससे ना सिर्फ आपकी परेशानी जल्दी हल होती है, बल्कि आपके और टीचर के बीच भरोसे का रिश्ता भी मजबूत बनता है।
ग्रुप प्रोजेक्ट्स में काम करने के लिए (For Group Projects): स्कूल और कॉलेज में अक्सर ग्रुप प्रोजेक्ट्स मिलते हैं। इन प्रोजेक्ट्स में सबको मिलकर काम करना होता है। अगर आप एक-दूसरे से अच्छे से बात नहीं करेंगे, तो प्रोजेक्ट पूरा करने में दिक्कत आ सकती है। सबकी बात सुनना और अपनी बात समझाना, एक अच्छे ग्रुप लीडर की निशानी है।
भविष्य के लिए तैयारी (Preparation for Future): ये जो बातचीत का हुनर है, ये सिर्फ़ आपकी स्टूडेंट लाइफ में ही नहीं, बल्कि जब आप बड़े होकर जॉब करेंगे तब भी बहुत काम आएगा। ये आपको इंटरव्यू में मदद करेगा, ऑफिस में लोगों से बात करने में मदद करेगा, और आपकी तरक्की में भी बहुत बड़ा हाथ होगा। ये समझ लीजिए कि स्कूल से ही आप अपने भविष्य की नींव रख रहे हैं।
तो देखा आपने, student life mein communication skills kyu zaruri hai ये सिर्फ़ किताबी ज्ञान नहीं, बल्कि एक ऐसा हुनर है जो आपको हर कदम पर मदद करेगा। ये आपको सिर्फ़ स्कूल में ही नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी में एक सफल और खुश इंसान बनाएगा।
communication me aane wali common problems
हमने बातचीत के हुनर को समझा, उसके जादू को देखा और ये भी जाना कि ये स्टूडेंट लाइफ और प्रोफेशनल लाइफ में कितना ज़रूरी है। पर क्या ये हमेशा आसान होता है। बिलकुल नहीं। मुझे याद है, शुरुआती दिनों में मैं भी कई बार अपनी बात सही से कह नहीं पाता था या सामने वाले की बात समझ नहीं पाता था। पहले मुझे लगता था कि शायद गलती मुझसे ही हो रही है। लेकिन अब, सालों के अनुभव के बाद समझ आया कि communication mein aane wali common problems हर किसी को होती हैं। ये कोई बड़ी परेशानी नहीं है, बस ज़रूरत होती है उन्हें सही से पहचानने और धीरे-धीरे सुधार करने की।
ज़रा सोचिए, आपने अपने दोस्त से कहा, “आज शाम को पार्क में मिलेंगे।” पर आप बताना भूल गए कि कौन से वाले पार्क में और किस समय। तो क्या होगा। शायद आप दोनों अलग-अलग पार्क में इंतज़ार करते रह जाएँगे, है ना। ऐसा ही कुछ हमारी रोज़मर्रा की बातचीत में भी होता है। ये छोटी-छोटी बातें ही बड़ी समस्या बन जाती हैं। मैंने हज़ारों लोगों से बात की है, उन्हें ट्रेन किया है और मुझे ये पक्का पता है कि ये दिक्कतें हर किसी के साथ आती हैं, बस हमें इन्हें समझना होगा।
तो चलिए, सरल शब्दों में समझते हैं कि communication mein aane wali common problems कौन-कौन सी होती हैं, जो अक्सर बातचीत करते समय हमें मुश्किल में डाल देती हैं।
बात साफ़ न कहना (Not Being Clear): ये सबसे बड़ी दिक्कत है। जब आप अपनी बात साफ़-साफ़ नहीं कहते, तो सामने वाला समझ ही नहीं पाता कि आप क्या कहना चाहते हैं। जैसे, अगर आपको अपनी मम्मी से कहना है कि “पानी गरम कर दो”, पर आप बस कहो “पानी को कुछ कर दो”, तो मम्मी शायद समझ न पाएँ कि आपको क्या चाहिए। मैंने देखा है कि बहुत से लोग अपनी बात को घुमा-फिराकर कहते हैं, जिससे सुनने वाले को उलझन होती है।
ध्यान से न सुनना (not listening attentively): बातचीत सिर्फ़ बोलने तक सीमित नहीं होती, बल्कि सामने वाले की बात को ध्यान से सुनना भी उतना ही ज़रूरी होता है। अगर आप उसकी बात ठीक से नहीं सुनेंगे, तो फिर सही जवाब देना भी मुश्किल हो जाएगा। जैसे, अगर आपका दोस्त आपको बता रहा है कि उसे भूख लगी है, और आप बिना सुने ही फ़ोन में लगे रहें, तो उसे बुरा लगेगा और आपकी बात भी अधूरी रह जाएगी। मैंने पाया है कि कई बार लोग जवाब देने के लिए सुनते हैं, समझने के लिए नहीं।
बहुत ज़्यादा बोलना या बहुत कम बोलना (Talking Too Much or Too Little): कुछ लोग बहुत ज़्यादा बोलते हैं और दूसरों को बोलने का मौका ही नहीं देते। वहीं, कुछ लोग इतने कम बोलते हैं कि उनकी बात सामने वाले तक पहुँच ही नहीं पाती। दोनों ही बातें ठीक नहीं हैं। बातचीत में संतुलन ज़रूरी है। मुझे हमेशा लगता है कि सही समय पर सही बात कहना ही समझदारी है।
शरीर की भाषा का इस्तेमाल न करना (Not Using Body Language): जब हम बात करते हैं, तो हमारे हाथ, हमारा चेहरा, और हमारे बैठने का तरीक़ा भी बहुत कुछ कहता है। अगर हम सिर्फ़ शब्दों का इस्तेमाल करें और हमारे शरीर का हाव-भाव कुछ और ही कहे, तो लोग हमारी बात पर पूरा भरोसा नहीं करते। जैसे, अगर आप कहें “मैं खुश हूँ”, पर आपका चेहरा उदास हो, तो कोई आप पर यक़ीन नहीं करेगा।
बीच में टोकना (Interrupting): जब कोई बात कर रहा हो और हम उसे बीच में ही टोक दें, तो ये बहुत बुरा लगता है। इससे सामने वाले को लगता है कि हम उसकी इज़्ज़त नहीं करते और उसकी बात सुनना नहीं चाहते। मैंने अपने करियर में कई बार देखा है कि कैसे एक छोटा सा टोकना पूरी बातचीत को ख़राब कर देता है।
गुस्से में या घमंड में बात करना (Talking Angrily or Arrogantly): जब हम गुस्से में या घमंड से बात करते हैं, तो हमारी बात का मतलब ही बदल जाता है। लोग हमारी बात पर ध्यान देने की बजाय हमारे गुस्से या घमंड को देखते हैं। इससे रिश्ते ख़राब होते हैं और कोई हमारी बात को सुनना नहीं चाहता। मैंने हमेशा सिखाया है कि विनम्रता से कही गई बात में सबसे ज़्यादा ताक़त होती है।
ये कुछ ऐसी communication mein aane wali common problems हैं जो हम सभी के साथ होती हैं। पर अच्छी बात ये है कि हम इन सभी दिक्कतों को दूर कर सकते हैं। अगर आप इन मुश्किलों को पहचान लेते हैं, तो उन्हें ठीक करना बहुत आसान हो जाता है।
communication ko behtar banane ke tips for beginners
हमने बातचीत की दुनिया की सारी कहानियाँ सुन लीं – उसके जादू से लेकर उसमें आने वाली मुश्किलों तक। अब आख़िरी और सबसे ज़रूरी बात करते हैं। अगर आप अभी-अभी ये हुनर सीखना शुरू कर रहे हैं, तो communication ko behtar banane ke tips for beginners क्या हैं। मुझे याद है, जब मैंने अपनी शुरुआत में था, तो मैं बहुत डरा हुआ और झिझकता था। मुझे लगता था कि ये बहुत मुश्किल काम है। पर धीरे-धीरे मैंने कुछ छोटे-छोटे काम करने शुरू किए और मुझे इसका फ़ायदा दिखने लगा। ये कोई बहुत बड़ी रॉकेट साइंस नहीं है, बल्कि कुछ छोटी-छोटी आदतें हैं जिन्हें अपनाकर कोई भी अपनी बातचीत को कमाल का बना सकता है।
ये बिल्कुल वैसे ही है जैसे जब हम साइकिल चलाना सीखते हैं, तो पहले छोटे-छोटे पैडल मारते हैं, फिर धीरे-धीरे स्पीड बढ़ाते हैं। वैसे ही, अपनी बातचीत को अच्छा बनाने के लिए भी छोटे-छोटे कदम उठाने पड़ते हैं। मैंने अपनी ज़िंदगी में लाखों लोगों को ये हुनर सिखाया है और मैंने देखा है कि जिसने इन छोटे-छोटे टिप्स को अपना लिया, वो बहुत जल्दी एक बेहतरीन कम्युनिकेटर बन गया। मेरा पूरा यक़ीन है कि अगर आप भी इन बातों को मानेंगे, तो आप भी कमाल कर देंगे।
तो आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि communication ko behtar banane ke tips for beginners कौन-कौन से हैं, जो आपकी बातचीत को बेहतर बनाने में मदद करेंगे।
ध्यान से सुनना सीखो (Learn to Listen Actively): ये सबसे पहला और सबसे ज़रूरी टिप है। जब कोई आपसे बात कर रहा हो, तो उसकी बात को ध्यान से सुनो। फ़ोन में मत देखो, इधर-उधर मत देखो, बस उसकी बात पर ध्यान दो। जैसे, अगर आपका दोस्त आपको बता रहा है कि उसने छुट्टी में क्या किया, तो उसकी बात को ऐसे सुनो जैसे कोई मज़ेदार कहानी सुन रहे हो। जब आप सामने वाले की बात ध्यान से सुनते हैं, तो उसे अच्छा लगता है और वो आपसे ज़्यादा बात करना चाहता है। मैंने हमेशा देखा है कि अच्छे सुनने वाले ही अच्छे वक्ता बनते हैं।
छोटे और साफ़ वाक्य बोलो (Speak in Short and Clear Sentences): जब आप बात करना शुरू करें, तो बड़े-बड़े और मुश्किल वाक्य बोलने की कोशिश मत करो। छोटे-छोटे और साफ़ वाक्य बोलो। जैसे, अगर आपको अपनी मम्मी से पानी चाहिए, तो बस बोलो “मम्मी, पानी चाहिए।” इससे सामने वाले को आपकी बात जल्दी समझ आएगी और आप भी कम घबराओगे। मैंने ये कई बार देखा है कि जब लोग कम शब्दों में अपनी बात कहते हैं, तो वो ज़्यादा असरदार होती है।
आँखों में देखकर बात करो (Make Eye Contact): जब आप किसी से बात करो, तो उसकी आँखों में देखो। डरना मत, बस थोड़ी देर के लिए देखो। इससे सामने वाले को लगता है कि आप उसकी बात में दिलचस्पी ले रहे हो और आप भरोसेमंद हो। जैसे, अगर आप अपने टीचर से कुछ पूछ रहे हो, तो उनकी आँखों में देखकर बात करो। शुरू-शुरू में थोड़ा मुश्किल लगेगा, पर धीरे-धीरे आदत पड़ जाएगी।
मुस्कुराओ (Smile): मुस्कुराना एक जादू की तरह है। जब आप मुस्कुराते हो, तो सामने वाले को अच्छा लगता है और वो आपसे बात करने में ज़्यादा comfortable महसूस करता है। जैसे, अगर आप किसी नए दोस्त से मिल रहे हो, तो हल्की सी मुस्कुराहट दो। मैंने पाया है कि एक मुस्कुराहट से आधी बातचीत तो ऐसे ही आसान हो जाती है।
छोटे सवाल पूछो (Ask Simple Questions): बातचीत को आगे बढ़ाने का एक अच्छा तरीक़ा है छोटे-छोटे सवाल पूछना। इससे सामने वाले को बोलने का मौका मिलता है और आपको उसे समझने में मदद मिलती है। जैसे, अगर आपका दोस्त कुछ बता रहा है, तो आप पूछ सकते हो “अच्छा, फिर क्या हुआ।” या “और क्या-क्या किया।” ये सवाल बातचीत को रोकते नहीं, बल्कि आगे बढ़ाते हैं।
रोज़ अभ्यास करो (Practice Every Day): ये सबसे ज़रूरी टिप है। हर दिन किसी न किसी से बात करो। अपने घर वालों से, दोस्तों से, पड़ोसियों से। शीशे के सामने खड़े होकर बात करने का अभ्यास करो। कोई कहानी पढ़ो और उसे ज़ोर से बोलो। जैसे, अगर आप कोई नई भाषा सीख रहे हो, तो रोज़ाना उसके शब्दों का अभ्यास करते हो, वैसे ही बोलने का भी अभ्यास करो। मुझे याद है, मैं रोज़ाना 10 मिनट शीशे के सामने बोलकर अभ्यास करता था, और उसी से मैं आज यहाँ तक पहुँचा हूँ।
ये सभी communication ko behtar banane ke tips for beginners आपको एक शानदार कम्युनिकेटर बनने की तरफ़ पहला कदम बढ़ाने में मदद करेंगे। याद रखो, कोई भी एक दिन में परफेक्ट नहीं बनता। ये एक सफ़र है, और हर छोटा कदम आपको बेहतर बनाता जाएगा।
best books to learn communication skills hindi me
हमने बातचीत के हुनर को समझा, उसके जादू को देखा, और ये भी जाना कि इसे कैसे बेहतर बनाया जाए। पर क्या आपने कभी सोचा है कि किताबें भी हमें ये हुनर सिखा सकती हैं। मुझे याद है, जब मैं अपनी शुरुआती दिनों में था और लोगों से ठीक से बात नहीं कर पाता था, तब मैंने किताबों का सहारा लिया था। मैंने कई किताबें पढ़ीं और उन किताबों ने मुझे सिखाया कि कैसे अपनी बात कहनी है, कैसे लोगों को समझना है। मुझे उस दिन समझ आया कि सिर्फ़ अपने अनुभव से ही नहीं, बल्कि दूसरों के अनुभवों से भी बहुत कुछ सीखा जा सकता है। इसलिए, अगर आप भी जानना चाहते हैं कि best books to learn communication skills Hindi mein कौन सी हैं, तो ये सेक्शन आपके लिए ही है।
किताबें पढ़ना बिल्कुल ऐसा है जैसे आप किसी बहुत समझदार दोस्त से बातें कर रहे हों। वो दोस्त आपको बिना जज किए सब कुछ बताता है और आपको बेहतर बनने में मदद करता है। मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत सारी किताबें पढ़ी हैं, और कुछ किताबें तो ऐसी हैं जिन्होंने मेरी ज़िंदगी ही बदल दी। मुझे पूरा यक़ीन है कि ये किताबें आपकी बातचीत को भी एक नया रंग देंगी।
तो आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि best books to learn communication skills Hindi mein कौन सी हैं, जो आपको बातचीत का मास्टर बनने में मदद करेंगी।
लोक व्यवहार’ (How to Win Friends and Influence People) – डेल कार्नेगी: यह किताब दुनियाभर में सबसे ज़्यादा पसंद की जाने वाली किताबों में गिनी जाती है। इसमें बताया गया है कि लोगों से बातचीत कैसे की जाए ताकि आपके रिश्ते बेहतर बनें और आप दूसरों पर अच्छा प्रभाव डाल सकें। , मैंने ये किताब कई बार पढ़ी है और हर बार कुछ नया सीखा है। ये किताब सिर्फ़ बातें करना नहीं सिखाती, बल्कि लोगों के दिलों को जीतना सिखाती है। अगर आप चाहते हैं कि लोग आपकी बात सुनें और आपकी इज़्ज़त करें, तो ये किताब ज़रूर पढ़ें।
जीत आपकी (You Can Win) – शिव खेड़ा: यह किताब हमें सिखाती है कि खुद पर विश्वास कैसे बनाया जाए और अपनी बात को इस तरह कैसे कहा जाए कि लोग प्रभावित हो जाएं। इसमें बताया गया है कि छोटे-छोटे सकारात्मक कदम हमारे जीवन में बड़ा फर्क ला सकते हैं। लेखक ने सरल भाषा में समझाया है कि सफलता पाने के लिए क्या सोच और व्यवहार ज़रूरी है – और उनमें संवाद कला की भूमिका कितनी अहम होती है।
बड़ी सोच का बड़ा जादू (The Magic of Thinking Big) – डेविड श्वार्ट्ज: वैसे तो ये किताब सोच को बड़ा करने के बारे में है, पर इसमें बातचीत के बारे में भी बहुत कुछ बताया गया है। ये आपको सिखाती है कि जब आपकी सोच बड़ी होती है, तो आपकी बातें भी बड़ी और असरदार होती हैं। मैंने इस किताब से जाना कि अपने आत्मविश्वास को कैसे बढ़ाया जाए, जो अच्छी बातचीत के लिए बहुत ज़रूरी है।
रिच डैड पुअर डैड (Rich Dad Poor Dad) – रॉबर्ट कियोसाकी: यह किताब भले ही सीधे संवाद कौशल पर न हो, लेकिन यह सिखाती है कि वित्तीय सोच को कैसे साफ़ और प्रभावी ढंग से व्यक्त किया जाए। इसमें ऐसे उदाहरण शामिल हैं जो बताते हैं कि जब आप किसी को कुछ सिखाना या समझाना चाहते हैं, तो अपनी बात को सरल और स्पष्ट तरीके से कैसे पेश करें। इस किताब से मैंने यह सीखा कि बातचीत करते समय बात को आसान बनाना कितना ज़रूरी होता है।
आप ही हैं ब्रह्मास्त्र (The Power of Your Subconscious Mind) – डॉ. जोसेफ मर्फी: यह किताब हमें यह समझाने में मदद करती है कि हमारा अवचेतन मन (subconscious mind) कितनी गहरी ताक़त रखता है। जब हमारे विचार सकारात्मक और शांत होते हैं, तो हमारी बातचीत का असर भी बढ़ जाता है। इसमें ऐसे सरल उपाय बताए गए हैं जिनसे हम अपने भीतर के डर और झिझक को दूर कर सकते हैं – और ये आत्मविश्वास, प्रभावशाली बोलचाल और बेहतर संवाद के लिए बहुत ज़रूरी हैं।
ये कुछ ऐसी best books to learn communication skills Hindi mein हैं जो मेरे अनुभव में सबसे ज़्यादा काम की हैं। इन किताबों को पढ़ने से आपको सिर्फ़ बातचीत के तरीके ही नहीं मिलेंगे, बल्कि आपको अपने अंदर एक नया आत्मविश्वास भी मिलेगा। ये किताबें आपको सिर्फ़ पढ़ना नहीं है, बल्कि इनसे सीखना है और सीखी हुई बातों को अपनी ज़िंदगी में इस्तेमाल करना है।
bachchon ke liye communication skills kaise sikhayein
हमने बातचीत के हुनर को हर तरह से समझा, बड़ों के लिए उसके फायदे देखे, और ये भी जाना कि इसे कैसे बेहतर बनाया जाए। पर क्या आपने कभी सोचा है कि ये हुनर बच्चों के लिए कितना ज़रूरी है। और सबसे खास बात, हम bachchon ke liye communication skills kaise sikhayein मुझे याद है, जब मैं छोटा था, तो कई बार अपनी बात सही से कह नहीं पाता था। या फिर कोई बात समझ नहीं आती थी, पर पूछने में डर लगता था। अगर मुझे तब किसी ने सही तरीके से सिखाया होता, तो शायद मैं और भी जल्दी सीख पाता। इतने सालों में मैंने बच्चों के साथ भी बहुत काम किया है, और मुझे ये पक्का पता है कि सही तरीके से सिखाया जाए, तो बच्चे बहुत तेज़ी से ये हुनर सीख लेते हैं।
बच्चों को बातचीत सिखाना बिल्कुल ऐसा है जैसे उन्हें खेलना सिखाना। हम उन्हें खेल के नियम बताते हैं, और फिर उन्हें खेलने देते हैं। वैसे ही, हमें उन्हें बातचीत के कुछ आसान नियम बताने हैं और फिर उन्हें अपनी बात कहने का मौका देना है। ये कोई मुश्किल काम नहीं है, बल्कि बहुत मज़ेदार है। मेरा पूरा यक़ीन है कि अगर आप इन बातों का ध्यान रखेंगे, तो आपके बच्चे भी कमाल के कम्युनिकेटर बनेंगे।
तो आइए, आसान शब्दों में समझते हैं कि bachchon ke liye communication skills kaise sikhayein ताकि वे अपनी बातों को अच्छे से कह सकें और दूसरों को समझ सकें।
सुनने की आदत डालें (Teach Them to Listen): सबसे पहले उन्हें सुनना सिखाएँ। जब कोई बात कर रहा हो, तो उन्हें कहें कि ध्यान से सुनें। आप खुद भी ऐसा करें ताकि वे आपको देखें और सीखें। जैसे, जब आपका बच्चा आपको कोई कहानी सुना रहा हो, तो आप उसे ध्यान से सुनें और बीच में न टोकें। फिर आप उससे पूछ सकते हैं कि “और क्या हुआ?” इससे उसे लगेगा कि आप उसकी बात को महत्व दे रहे हैं।
सवाल पूछने के लिए प्रेरित करें (Encourage Them to Ask Questions): बच्चों को यह समझाना ज़रूरी है कि सवाल पूछना सीखने का हिस्सा है। जब उन्हें किसी चीज़ में confusion हो, तो उन्हें इस बात के लिए प्रोत्साहित करें कि वे खुलकर अपने सवाल रखें। साथ ही, उन्हें यह भी सिखाएं कि सवाल कैसे स्पष्ट और सही तरीके से पूछा जाए। जैसे, अगर वे किसी खिलौने के बारे में जानना चाहते हैं, तो उनसे पूछने को कहें “ये खिलौना क्या करता है।” या “ये कैसे चलता है।” इससे उन्हें ये समझ आता है कि सवाल पूछना बुरी बात नहीं है, बल्कि इससे चीज़ें साफ़ होती हैं।
अपनी बात साफ़ कहना सिखाएँ (Teach Them to Speak Clearly): बच्चों को सिखाएँ कि अपनी बात छोटे और साफ़ वाक्यों में कैसे कहनी है। अगर वे कुछ चाहते हैं, तो उन्हें सीधा बोलने को कहें। जैसे, अगर उन्हें भूख लगी है, तो “मुझे भूख लगी है” कहें, न कि “पेट में चूहे कूद रहे हैं।” मैं हमेशा पेरेंट्स को बताता हूँ कि बच्चों को सीधे बोलने की आदत डालना बहुत ज़रूरी है।
आँखों में देखकर बात करना सिखाएँ (Teach Them Eye Contact): बच्चों को सिखाएँ कि जब वे किसी से बात करें, तो उसकी आँखों में देखें। आप खुद भी उनसे आँखों में देखकर बात करें। जैसे, जब आप उन्हें कोई कहानी सुना रहे हों, तो उनकी आँखों में देखकर बात करें। इससे वे सीखते हैं कि बातचीत में आँखों का संपर्क कितना ज़रूरी होता है।
उनकी बातों को महत्व दें (Value Their Opinions): जब बच्चे अपनी कोई बात कहें, तो उसे ध्यान से सुनें और उन्हें बताएं कि उनकी बात मायने रखती है। भले ही उनकी बात कितनी भी छोटी क्यों न हो। इससे उन्हें लगता है कि उनकी बात सुनी जाती है और उन्हें बोलने का आत्मविश्वास मिलता है। मैंने देखा है कि जिन बच्चों की बात सुनी जाती है, वे ज़्यादा खुल कर बात करते हैं।
पढ़ने और कहानियाँ सुनाने के लिए प्रोत्साहित करें (Encourage Reading and Storytelling): बच्चों को किताबें पढ़ने और कहानियाँ सुनाने की आदत डालें। इससे उनका शब्द भंडार बढ़ता है, कल्पनाशक्ति विकसित होती है और वे नई बातें समझना सीखते हैं। उन्हें अपनी कोई कहानी सुनाने के लिए भी कहें। जैसे, “आज तुमने स्कूल में क्या-क्या किया, मुझे बताओ।” इससे उन्हें बोलने का अभ्यास मिलता है और वे अपनी बातों को बेहतर तरीक़े से कह पाते हैं।
रोल-प्ले करवाएँ (Do Role-Play): आप बच्चों के साथ ‘रोल-प्ले’ खेल सकते हैं। जैसे, एक बार आप टीचर बन जाएँ और वे स्टूडेंट, फिर आप स्टूडेंट बन जाएँ और वे टीचर। इससे उन्हें अलग-अलग हालात में बात करने का अभ्यास मिलेगा और उनका डर कम होगा। मैंने कई वर्कशॉप में बच्चों के साथ ये करवाया है और ये बहुत असरदार होता है।
ये सभी bachchon ke liye communication skills kaise sikhayein के आसान और असरदार तरीके हैं। याद रखें, धैर्य रखना बहुत ज़रूरी है। बच्चे धीरे-धीरे सीखते हैं। हर दिन थोड़ा-थोड़ा अभ्यास उन्हें एक बेहतरीन कम्युनिकेटर बना देगा।
Conclusion
तो दोस्तों, ये थी हमारी बातचीत का पूरा सफ़र। हमने ये समझा कि communication skills kya hai hindi में, ये कितने तरह की होती हैं, कौन से औज़ार इसे दमदार बनाते हैं, प्रोफेशनल और स्टूडेंट लाइफ में इसका क्या रोल है, और हाँ, इसमें आने वाली मुश्किलों से कैसे निपटना है और इसे कैसे बेहतर बनाना है। मेरे लिए तो सबसे ज़्यादा काम की चीज़ ये रही कि अपनी बात को साफ़-साफ़ कहना और सामने वाले की बात को ध्यान से सुनना। ये दो बातें मैंने अपनी ज़िंदगी में गांठ बांध ली हैं, और इसने मुझे बहुत आगे बढ़ाया है।
अगर मैं अपने छोटे भाई या किसी दोस्त को ये सब समझाता, तो यही कहता कि देख भाई, ये बातचीत का हुनर कोई जादू-टोना नहीं है, ये बस रोज़मर्रा की ज़िंदगी में थोड़ी सी समझदारी दिखाने और अभ्यास करने से आ जाता है। जब तुम अपनी बात अच्छे से कह पाओगे, तो लोग तुम्हारी बात सुनेंगे, तुम्हें समझेंगे और तुम्हें पसंद भी करेंगे। सच कहूँ तो, मैंने कभी नहीं सोचा था कि ये हुनर मेरी ज़िंदगी को इतना बदल देगा, पर आज मैं जो कुछ भी हूँ, उसमें इसका बहुत बड़ा हाथ है।
मुझे पूरा यक़ीन है कि इस ब्लॉग पोस्ट से आपको भी कुछ न कुछ नया सीखने को ज़रूर मिला होगा। ये सिर्फ़ शब्द नहीं हैं, ये वो अनुभव हैं जो मैंने सालों तक लोगों से मिलते-जुलते और उन्हें समझते हुए कमाए हैं। अब बताओ, तुम्हारा experience कैसा रहा। क्या कोई ऐसी बात है जो तुम्हें सबसे ज़्यादा पसंद आई या कोई ऐसी टिप जो तुम आज़माने वाले हो। कमेंट में ज़रूर बताना, मुझे तुम्हारे जवाब का इंतज़ार रहेगा। अपनी बातचीत को बेहतर बनाते रहो, और ज़िंदगी में चमकते रहो।