Introduction
कभी ऐसा हुआ है कि आप बाज़ार में कुछ खरीदने गए हों और मनचाही चीज़ आपको मनचाहे दाम पर न मिली हो। या फिर ऑफिस में कोई ऐसा प्रोजेक्ट मिला हो जिस पर आपकी टीम की राय अलग-अलग हो। यार, मुझे याद है एक बार मेरे दोस्त ने अपनी पुरानी बाइक बेचने की कोशिश की और खरीदार उसे कौड़ियों के मोल ले जा रहा था। मुझे उस दिन एक बात समझ आई, ज़िंदगी में negotiation skills in hindi की अहमियत कितनी ज़्यादा है। ये सिर्फ़ पैसों या चीज़ों का मामला नहीं है, बल्कि हर उस जगह काम आता है जहाँ दो या उससे ज़्यादा लोग किसी एक बात पर सहमत होने की कोशिश कर रहे हों।
जब मैंने पहली बार इन स्किल्स को आज़माया था, तो सच कहूँ, थोड़ा अजीब लगा था। मुझे लगा कि क्या मैं किसी को धोखा तो नहीं दे रहा। लेकिन धीरे-धीरे मुझे एहसास हुआ कि नेगोशिएशन का मतलब सिर्फ़ अपनी बात मनवाना नहीं, बल्कि एक ऐसा रास्ता निकालना है जहाँ सबकी जीत हो। ये एक आर्ट है, एक ऐसी कला जो आपको हर मोड़ पर मदद कर सकती है, चाहे वो आपकी सैलरी बढ़ाने की बात हो, या फिर घर पर बच्चों से कोई बात मनवाने की। कभी-कभी लगता है कि ब्लॉगिंग भी किसी दोस्ती जैसी चीज़ है, जहाँ मैं अपने अनुभवों को आपके साथ साझा कर सकता हूँ।
इस पोस्ट में, मैं सिर्फ़ किताबी बातें नहीं करूँगा। मैं आपको अपने कुछ प्रैक्टिकल अनुभव और ट्रिक्स बताऊँगा, जो मैंने सालों के काम और कुछ प्यारी-प्यारी गलतियों से सीखे हैं। आप सीखेंगे कि कैसे अपनी बात को प्रभावशाली ढंग से रखा जाए, कैसे दूसरे की बात को समझा जाए, और कैसे एक ऐसा समाधान निकाला जाए जिससे सब खुश हों। तो, अगर आप भी अपनी ज़िंदगी में थोड़ी और “हाँ” सुनना चाहते हैं और दूसरों को भी “हाँ” कहने का मौका देना चाहते हैं, तो ये आर्टिकल आपके लिए ही है।
negotiation skills definition
याद है बचपन में जब हम दोस्तों के साथ खेलते थे और किसी खिलौने को लेकर झगड़ा हो जाता था। तब कोई न कोई बड़ा आकर कहता था, “चलो, मिलकर बात सुलझाते हैं।” बस, यही है negotiation skills definition ये कोई किताबी चीज़ नहीं है, बल्कि ज़िंदगी का एक ऐसा हिस्सा है जो हम सब जाने-अनजाने में इस्तेमाल करते हैं।
जब दो या उससे ज़्यादा लोग किसी बात पर सहमत होने की कोशिश करते हैं, जहाँ सबकी अपनी-अपनी पसंद होती है, तो उसे नेगोशिएशन कहते हैं। इसमें कोई एक जीतने वाला नहीं होता और कोई एक हारने वाला नहीं होता, बल्कि एक ऐसा रास्ता निकाला जाता है जिससे सबकी थोड़ी-थोड़ी बात बन जाए।
मैंने अपने इतने सालों के काम में हज़ारों लोगों से बातचीत की है – कभी क्लाइंट्स से डील फाइनल करने के लिए, तो कभी अपनी टीम में किसी प्रोजेक्ट पर सबको एक पेज पर लाने के लिए। मुझे याद है एक बार मेरे छोटे भाई को साइकिल चाहिए थी और मेरे पापा उसे दिलाना नहीं चाहते थे। मैंने बीच में पड़कर ऐसा तरीका निकाला कि भाई को पुरानी साइकिल ठीक करवाकर मिल गई और पापा के पैसे भी बच गए। ये मेरा पहला “रियल-लाइफ” नेगोशिएशन था और इसने मुझे सिखाया कि ये सिर्फ़ बड़े बिज़नेस की बात नहीं है, ये रोज़मर्रा की चीज़ है।
आप पूछेंगे कि इसमें “स्किल” क्या है। स्किल ये है कि आप अपनी बात को कैसे रखते हैं, दूसरे की बात को कैसे समझते हैं, और कैसे एक ऐसा समाधान निकालते हैं जो दोनों पक्षों को मंजूर हो। इसमें सुनना, सवाल पूछना और थोड़ा सा समझौता करना शामिल है। मेरा मानना है कि अगर आप इसे समझ लेते हैं, तो आप ज़िंदगी की कई मुश्किलों को आसानी से सुलझा सकते हैं।
तो, अब जब हमने समझ लिया है कि negotiation skills definition क्या है, तो क्या आप जानना चाहेंगे कि ये स्किल्स हमें कैसे मिलते हैं और इन्हें बेहतर कैसे बनाया जा सकता है।
importance of negotiation skills
अब जब हम समझ चुके हैं कि नेगोशिएशन स्किल्स आखिर हैं क्या, तो अगला सवाल ये उठता है कि ये जरूरी क्यों हैं। सच कहें तो, इनकी ज़रूरत हर मोड़ पर महसूस होती है, यही तो है importance of negotiation skills चाहे दफ्तर की मीटिंग हो, घर में किसी फैसले पर बातचीत करनी हो या फिर किसी दोस्त से कोई बात मनवानी हो – हर जगह ये हुनर काम आता है।
सोचो, कभी आपने अपनी मम्मी से आइसक्रीम ज़्यादा लेने की ज़िद की हो, या अपने टीचर से छुट्टी मांगने की कोशिश की हो। बचपन से ही हम सब अनजाने में नेगोशिएशन करते आए हैं। लेकिन जब ये स्किल्स पक्के हो जाते हैं, तो आपकी ज़िंदगी में कई चीज़ें आसान हो जाती हैं।
मेरे अनुभव से कहूँ तो, ये स्किल्स सिर्फ़ बड़ी-बड़ी मीटिंग्स या बिज़नेस डील के लिए नहीं हैं। ये आपकी रोज़मर्रा की ज़िंदगी को भी बेहतर बनाते हैं। जैसे, एक बार मुझे अपने घर के लिए एक नया फ्रिज खरीदना था। दुकानदार ने बहुत ज़्यादा दाम बताया। मैंने थोड़ी बातचीत की, अपनी ज़रूरत बताई और उसने भी अपनी बात रखी। आख़िरकार, हम दोनों एक ऐसे दाम पर सहमत हुए जो मुझे भी ठीक लगा और उसे भी। इस छोटे से वाकये ने मुझे फिर से बताया कि इनकी importance of negotiation skills कितनी ज़्यादा है।
ये सिर्फ़ पैसा बचाने या अपनी बात मनवाने तक सीमित नहीं है। ये रिश्तों को भी मज़बूत करता है। जब आप अच्छे से नेगोशिएट करना जानते हैं, तो आप दूसरों की बात भी सुनते हैं, उनकी ज़रूरतों को समझते हैं। इससे सामने वाले को लगता है कि आप उनकी परवाह करते हैं। मैंने कई बार देखा है कि अच्छी नेगोशिएशन से सिर्फ़ डील ही नहीं बनती, बल्कि सामने वाले के साथ एक अच्छा रिश्ता भी बन जाता है, जो आगे भी काम आता है। ये मेरी सालों की प्रैक्टिस और लोगों से बातचीत का निचोड़ है।
तो, चाहे आपको अपनी पसंद की चीज़ कम दाम में लेनी हो, या अपने दोस्तों के साथ मिलकर कोई प्लान बनाना हो, या फिर अपनी बात को किसी बड़े ग्रुप में समझाना हो हर जगह importance of negotiation skills काम आते हैं। ये आपको न सिर्फ़ अपनी बात कहने का आत्मविश्वास देते हैं, बल्कि दूसरों के साथ बेहतर तरीके से जुड़ने में भी मदद करते हैं।
qualities of a good negotiator
अब जब हम समझ गए हैं कि negotiation skills क्या हैं और ये क्यों ज़रूरी हैं, तो अगला सवाल ये आता है कि एक अच्छा नेगोशिएटर बनने के लिए हममें क्या ख़ास बातें होनी चाहिए। यही है qualities of a good negotiator। ये कोई जादू नहीं है, बल्कि कुछ ऐसी आदतें हैं जिन्हें कोई भी सीख सकता है।
मैंने अपनी ज़िंदगी में बहुत से लोगों को देखा है जो बातचीत में माहिर होते हैं। कभी वो कोई सेल्स पर्सन होता है जो मुश्किल से मुश्किल ग्राहक को भी मना लेता है, तो कभी कोई दोस्त जो ग्रुप में सबकी बात सुनकर सबसे बढ़िया प्लान बना देता है। मैंने इन सब से सीखा कि एक अच्छे नेगोशिएटर में कुछ ख़ास गुण होते हैं। जैसे, सबसे पहली बात है सुनना। अगर आप सामने वाले की बात ध्यान से नहीं सुनेंगे, तो आपको पता ही नहीं चलेगा कि वो क्या चाहता है। मुझे याद है एक बार मेरे एक क्लाइंट ने अपने प्रोजेक्ट के लिए कुछ ऐसी शर्तें रखीं जो हमें बिलकुल समझ नहीं आ रही थीं। मैंने उनसे कहा, “सर, क्या आप हमें थोड़ा और विस्तार से समझा सकते हैं कि आपको असल में क्या चाहिए।” उन्होंने बताया और फिर मुझे उनकी असली ज़रूरत समझ आई। यहीं से सुलझाना शुरू हुआ।
दूसरी ज़रूरी बात है सब्र रखना। कभी-कभी चीज़ें तुरंत नहीं सुलझतीं। नेगोशिएशन में हड़बड़ी नहीं करनी चाहिए। मैंने कई बार देखा है कि अगर आप शांति से और धैर्य से काम लेते हैं, तो अक्सर सबसे अच्छे नतीजे मिलते हैं। ये ठीक वैसा ही है जैसे कोई पहेली सुलझाना – एक-एक टुकड़ा जोड़ते जाओ, और धीरे-धीरे पूरी तस्वीर सामने आ जाती है। ये मेरा सालों का अनुभव है।
तीसरी बात है अपनी बात को साफ़ और सीधे तरीक़े से कहना। घुमा-फिराकर बात करने से अक्सर ग़लतफ़हमी हो जाती है। जब आप अपनी बात आसानी से समझा पाते हैं, तो सामने वाले को आप पर भरोसा होता है। आख़िरी और सबसे अहम बात है लचीलापन। हमेशा अपनी बात पर अड़े नहीं रहना चाहिए। कभी-कभी थोड़ा झुकना पड़ता है, थोड़ी अदला-बदली करनी पड़ती है ताकि दोनों पक्षों को लगे कि उनकी सुनी गई है। एक बार मेरे एक टीम लीडर ने कहा था, “रितेश, याद रखना, अच्छी डील वो है जहाँ कोई भी पूरी तरह से हारा हुआ महसूस न करे।” ये बात मेरे दिमाग़ में बैठ गई।
अगर आप एक अच्छे बातचीत करने वाले इंसान बनना चाहते हैं, तो पहले इन qualities of a good negotiator को समझिए और फिर धीरे-धीरे अपनी आदतों में शामिल कीजिए। लेकिन सवाल ये है – इन गुणों को असल ज़िंदगी में कैसे अपनाया जाए। दरअसल, जब आप रोज़ की बातचीत में इन स्किल्स को इस्तेमाल करना शुरू करते हैं – चाहे वो ऑफिस में मीटिंग हो, घर पर कोई फैसला लेना हो या दोस्तों से कोई बात मनवानी हो – तब आप महसूस करेंगे कि आपकी बातों में असर बढ़ने लगा है और आप ज्यादा बेहतर समझौते कर पाते हैं।
negotiation techniques
हमने अब तक समझा कि negotiation skills क्या होते हैं, उनकी ज़रूरत क्यों है, और एक अच्छे नेगोशिएटर में क्या-क्या बातें होती हैं। अब जानते हैं कि बातचीत को बेहतर बनाने के लिए कौन सी negotiation techniques इस्तेमाल की जा सकती हैं। ये ऐसे छोटे-छोटे तरीके हैं जिनसे आप अपनी बात को और मज़बूत बना सकते हैं।
सबसे पहली तरकीब है ‘तैयारी करना’। जैसे स्कूल जाने से पहले आप अपना बस्ता तैयार करते हो, वैसे ही किसी भी बातचीत में जाने से पहले आपको पता होना चाहिए कि आप क्या चाहते हो और सामने वाला क्या चाह सकता है। मुझे याद है एक बार मुझे एक बहुत ज़रूरी कॉन्ट्रैक्ट साइन करना था। मैंने पहले से ही सारी चीज़ें लिख ली थीं कि मैं क्या-क्या चाहता हूँ और किन बातों पर समझौता कर सकता हूँ। जब मैं उनसे मिला, तो मुझे पता था कि मुझे कहाँ तक जाना है। अगर आप तैयार होकर जाते हैं, तो आपको आत्मविश्वास आता है और सामने वाला भी आपकी बात को गंभीरता से लेता है। यह मेरा कई सालों का अनुभव रहा है कि बिना तैयारी के आप कभी भी बेहतरीन नतीजे नहीं पा सकते।
दूसरी तरकीब है ‘सवाल पूछना और सुनना’। सिर्फ़ अपनी बात बोलते रहने से काम नहीं चलेगा। आपको सामने वाले से सवाल पूछने होंगे, ताकि आपको उसकी ज़रूरतें और उसकी सोच समझ आए। और जब वो बोले, तो उसे ध्यान से सुनना है। याद है मैंने पहले बताया था कि कैसे मैंने क्लाइंट से और विस्तार से बताने को कहा था। बस वैसा ही। जब आप सुनते हैं, तो आपको पता चलता है कि असली समस्या क्या है और उसका समाधान कैसे निकाला जा सकता है। इससे सामने वाले को भी लगता है कि आप उसकी बात को महत्व दे रहे हैं, और यहीं से भरोसा बनना शुरू होता है।
“विकल्प रखना” एक ज़बरदस्त negotiation technique है। अगर आपकी पहली बात पर सामने वाला राज़ी न हो, तो आपके पास हमेशा कुछ और रास्ते खुले होने चाहिए। मान लीजिए, आप किसी दुकान पर अपना पसंदीदा खिलौना लेने गए, लेकिन वो वहाँ नहीं मिल रहा। अगर आपने पहले ही सोच रखा है कि इसकी जगह कोई और खिलौना ले सकते हैं या फिर किसी दूसरी दुकान पर जाकर देख सकते हैं, तो आपकी बातचीत बहुत असरदार हो जाती है। जब आप सिर्फ़ एक ही चीज़ पर अड़े नहीं रहते, बल्कि थोड़ा लचीलापन दिखाते हैं, तो सामने वाला भी आपको गंभीरता से लेता है और कोई न कोई समाधान ज़रूर निकल आता है।
ये सिर्फ़ कुछ ही negotiation techniques हैं जो मैंने सालों से इस्तेमाल की हैं और जिन्होंने मुझे वाकई बहुत मदद की है। इनसे आप अपनी बातचीत को सही दिशा दे सकते हैं और ऐसे नतीजे पा सकते हैं जो सबको खुश करें।
negotiation P’s prepare probe propose
हमने अब तक बातचीत के कई पहलुओं को देखा, है ना। अब बात करते हैं कुछ आसान लेकिन बहुत काम के तरीकों की, जिन्हें मैं negotiation P’s: prepare, probe, propose कहता हूँ। ये तीन छोटे कदम हैं जो आपको किसी भी बातचीत में मदद करेंगे, जैसे आप कोई खेल खेल रहे हों और उसके नियम सीख रहे हों।
पहला ‘P’ है Prepare (तैयारी)। याद है, मैंने पहले बताया था कि कैसे मैंने एक बड़े कॉन्ट्रैक्ट के लिए पहले से सब कुछ लिख लिया था। बस, वही तैयारी है। इसका मतलब है कि आप बातचीत में जाने से पहले सोच लें कि आपको क्या चाहिए, और सामने वाला क्या मांग सकता है। जैसे, अगर आपको अपने दोस्त से उसकी पेंसिल चाहिए, तो सोचो कि वो क्यों नहीं देना चाहेगा और तुम बदले में उसे क्या दे सकते हो। अगर आप तैयार होकर जाते हैं, तो आपको पता होता है कि क्या बोलना है और क्या नहीं। मुझे मेरे एक पुराने बॉस ने सिखाया था, “रितेश, जो तैयारी करता है, वो आधी जंग वहीं जीत जाता है।” और ये बात मैंने अपने काम में बार-बार सच होते देखी है।
दूसरा ‘P’ है Probe (पता लगाना)। इसका मतलब है सवाल पूछना और ध्यान से सुनना। जैसे कोई जासूस किसी केस को सुलझाने के लिए सवाल पूछता है, वैसे ही आपको भी सामने वाले से सवाल पूछने होंगे। “आपको ये क्यों चाहिए।” या “आपकी क्या उम्मीदें हैं।” जब आप सवाल पूछते हैं, तो आपको सामने वाले की असली बात समझ आती है। इससे आपको पता चलता है कि वो क्या सोच रहा है और उसकी ज़रूरत क्या है। मेरे अनुभव से, जितनी ज़्यादा जानकारी आपके पास होती है, उतनी ही अच्छी तरह से आप बातचीत कर पाते हैं। जब मैंने पहली बार ये तरीका अपनाया था, तो मुझे लगा कि मैं सिर्फ़ सवाल पूछ रहा हूँ, लेकिन धीरे-धीरे मुझे समझ आया कि ये सामने वाले को समझने का सबसे अच्छा तरीका है।
और तीसरा ‘P’ है Propose (पेश करना)। जब आपने तैयारी कर ली है और सामने वाले की बातें सुन ली हैं, तब अपनी बात या अपना प्रस्ताव सामने रखो। ये ऐसा है जैसे आपने होमवर्क कर लिया, सवाल पूछकर सब जान लिया, अब अपना जवाब देना है। लेकिन सिर्फ़ अपनी बात नहीं रखनी, बल्कि ऐसी बात रखनी है जिसमें सामने वाले का भी थोड़ा फ़ायदा हो। ये वो जगह है जहाँ हम दोनों के लिए एक ऐसा हल निकालते हैं जो सबको पसंद आए। जैसे, अगर आपको खिलौना चाहिए और दोस्त को टॉफ़ी, तो आप कह सकते हो, “अगर तुम मुझे थोड़ी देर के लिए अपना खिलौना दोगे, तो मैं तुम्हें अपनी टॉफ़ी दूँगा।”
ये negotiation P’s: prepare, probe, propose सिर्फ़ तीन आसान से कदम हैं, लेकिन ये आपकी बातचीत को एक सही रास्ता देते हैं। इनसे आप भटकते नहीं और एक अच्छे नतीजे पर पहुँच पाते हैं।
negotiation communication calm collaborate compromise
हमने अभी तक negotiation के कई पहलुओं को जाना, है ना। अब मैं आपको बातचीत के कुछ और ज़रूरी हिस्सों के बारे में बताता हूँ, जिन्हें मैं negotiation communication calm collaborate compromise कहता हूँ। ये ऐसे गुण हैं जो किसी भी बातचीत को आसान और सफल बनाते हैं।
सबसे पहले बात करते हैं communication की। इसका मतलब है कि अपनी बात को साफ़-साफ़ कहना और दूसरे की बात को ध्यान से सुनना। जैसे आप अपने दोस्त को बताते हो कि आपको कौन सा खेल खेलना है, वैसे ही आपको भी अपनी बात खुलकर कहनी चाहिए। और जैसे आप उसकी बात सुनते हो, वैसे ही सामने वाले की भी सुनो। मुझे याद है एक बार मेरी टीम में एक प्रोजेक्ट पर सब अलग-अलग राय दे रहे थे। मैंने सबको एक-एक करके बोलने का मौका दिया और ध्यान से सुना। जब आप अच्छे से कम्युनिकेट करते हैं, तो कोई ग़लतफ़हमी नहीं होती और चीज़ें आसानी से सुलझ जाती हैं। ये मेरी सालों की प्रैक्टिस है जिसने मुझे सिखाया है कि बातचीत में सबसे ज़रूरी चीज़ क्या है।
दूसरी बात है calm रहना, यानी शांत रहना। कभी-कभी बातचीत में गरमा-गरमी हो जाती है, लेकिन आपको शांत रहना होगा। अगर आप गुस्सा हो जाते हैं या हड़बड़ा जाते हैं, तो बात बिगड़ सकती है। जैसे, अगर आप अपनी मम्मी से कोई चीज़ मांग रहे हो और वो मना कर दें, तो गुस्सा होने की बजाय, शांत रहकर फिर से बात करने की कोशिश करो। मैंने देखा है कि जो लोग शांत रहते हैं, वो मुश्किल हालात में भी सही फैसले ले पाते हैं और सामने वाले को भी भरोसा दिला पाते हैं कि आप सही बात कर रहे हैं। ये एक ऐसी खूबी है जो सिर्फ बातचीत में ही नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी में काम आती है।
तीसरी चीज़ है collaborate करना, यानी मिलकर काम करना। नेगोशिएशन में सिर्फ़ अपनी जीत नहीं देखनी होती, बल्कि ऐसा रास्ता खोजना होता है जहाँ सबकी जीत हो। ये ऐसा है जैसे आप और आपका दोस्त मिलकर कोई टावर बना रहे हो – दोनों को एक साथ काम करना होगा ताकि टावर बन पाए। मेरा मानना है कि अगर आप सामने वाले को अपना दुश्मन नहीं, बल्कि अपना साथी समझते हैं, तो समाधान खोजना बहुत आसान हो जाता है। मैंने अपनी कंपनी में कई बार मुश्किल डील को सिर्फ इसलिए सुलझाया है क्योंकि हमने सामने वाली कंपनी को अपना पार्टनर समझा, ना कि सिर्फ ग्राहक।
और आख़िरी लेकिन बहुत अहम बात है compromise करना, यानी समझौता करना। कभी-कभी आपको अपनी थोड़ी बात छोड़नी पड़ती है ताकि सामने वाले की भी बात बन जाए। ये ऐसा है जैसे आप और आपका दोस्त एक ही खिलौना चाहते हो, तो आप थोड़ी देर तुम खेलो, थोड़ी देर मैं खेलूँ। ये कोई हार नहीं होती, बल्कि एक ऐसी जीत होती है जहाँ दोनों खुश होते हैं। जब आप समझौता करने को तैयार रहते हैं, तो सामने वाला भी आपके साथ मिलकर काम करना चाहता है। ये दिखाता है कि आप ज़िद्दी नहीं हैं, बल्कि समझदार हैं।
ये negotiation communication calm collaborate compromise बातचीत के वो आधार हैं जिन पर चलकर आप किसी भी मुश्किल बातचीत को आसान बना सकते हैं और अच्छे नतीजे पा सकते हैं।
best alternatives & bargaining zone
हमने अभी तक negotiation के कई पहलुओं को जाना, है ना। अब मैं आपको बातचीत के कुछ और ज़रूरी हिस्सों के बारे में बताता हूँ, जिन्हें मैं negotiation communication calm collaborate compromise कहता हूँ। ये ऐसे गुण हैं जो किसी भी बातचीत को आसान और सफल बनाते हैं।
सबसे पहले बात करते हैं communication की। इसका मतलब है कि अपनी बात को साफ़-साफ़ कहना और दूसरे की बात को ध्यान से सुनना। जैसे आप अपने दोस्त को बताते हो कि आपको कौन सा खेल खेलना है, वैसे ही आपको भी अपनी बात खुलकर कहनी चाहिए। और जैसे आप उसकी बात सुनते हो, वैसे ही सामने वाले की भी सुनो। मुझे याद है एक बार मेरी टीम में एक प्रोजेक्ट पर सब अलग-अलग राय दे रहे थे। मैंने सबको एक-एक करके बोलने का मौका दिया और ध्यान से सुना। जब आप अच्छे से कम्युनिकेट करते हैं, तो कोई ग़लतफ़हमी नहीं होती और चीज़ें आसानी से सुलझ जाती हैं। ये मेरी सालों की प्रैक्टिस है जिसने मुझे सिखाया है कि बातचीत में सबसे ज़रूरी चीज़ क्या है।
दूसरी बात है calm रहना, यानी शांत रहना। कभी-कभी बातचीत में गरमा-गरमी हो जाती है, लेकिन आपको शांत रहना होगा। अगर आप गुस्सा हो जाते हैं या हड़बड़ा जाते हैं, तो बात बिगड़ सकती है। जैसे, अगर आप अपनी मम्मी से कोई चीज़ मांग रहे हो और वो मना कर दें, तो गुस्सा होने की बजाय, शांत रहकर फिर से बात करने की कोशिश करो। मैंने देखा है कि जो लोग शांत रहते हैं, वो मुश्किल हालात में भी सही फैसले ले पाते हैं और सामने वाले को भी भरोसा दिला पाते हैं कि आप सही बात कर रहे हैं। ये एक ऐसी खूबी है जो सिर्फ बातचीत में ही नहीं, बल्कि पूरी ज़िंदगी में काम आती है।
तीसरी चीज़ है collaborate करना, यानी मिलकर काम करना। नेगोशिएशन में सिर्फ़ अपनी जीत नहीं देखनी होती, बल्कि ऐसा रास्ता खोजना होता है जहाँ सबकी जीत हो। ये ऐसा है जैसे आप और आपका दोस्त मिलकर कोई टावर बना रहे हो – दोनों को एक साथ काम करना होगा ताकि टावर बन पाए। मेरा मानना है कि अगर आप सामने वाले को अपना दुश्मन नहीं, बल्कि अपना साथी समझते हैं, तो समाधान खोजना बहुत आसान हो जाता है। मैंने अपनी कंपनी में कई बार मुश्किल डील को सिर्फ इसलिए सुलझाया है क्योंकि हमने सामने वाली कंपनी को अपना पार्टनर समझा, ना कि सिर्फ ग्राहक।
और आख़िरी लेकिन बहुत अहम बात है compromise करना, यानी समझौता करना। कभी-कभी आपको अपनी थोड़ी बात छोड़नी पड़ती है ताकि सामने वाले की भी बात बन जाए। ये ऐसा है जैसे आप और आपका दोस्त एक ही खिलौना चाहते हो, तो आप थोड़ी देर तुम खेलो, थोड़ी देर मैं खेलूँ। ये कोई हार नहीं होती, बल्कि एक ऐसी जीत होती है जहाँ दोनों खुश होते हैं। जब आप समझौता करने को तैयार रहते हैं, तो सामने वाला भी आपके साथ मिलकर काम करना चाहता है। ये दिखाता है कि आप ज़िद्दी नहीं हैं, बल्कि समझदार हैं।
ये negotiation communication calm collaborate compromise बातचीत के वो आधार हैं जिन पर चलकर आप किसी भी मुश्किल बातचीत को आसान बना सकते हैं और अच्छे नतीजे पा सकते हैं।
role of emotional intelligence
तो दोस्तों, अब तक हमने बातचीत की कला के बारे में बहुत कुछ सीखा है, है ना। लेकिन एक और बहुत ख़ास चीज़ है जो आपकी बातचीत को सच में बदल सकती है – वो है emotional intelligence। ये कोई मुश्किल शब्द नहीं है, बल्कि बहुत ही आसान और ज़रूरी बात है, जिसे मैं आपको समझाता हूँ।
सोचो, जब आप किसी से बात करते हो, तो सिर्फ़ शब्दों से ही बात नहीं होती। सामने वाले के हाव-भाव, उसकी आवाज़ का तरीका, या उसकी आँखों में दिखने वाली उदासी या खुशी भी बहुत कुछ कहती है। Emotional intelligence का मतलब है अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझना और उन्हें अच्छे से संभालना। जैसे, अगर आपका दोस्त नाराज़ है, तो आप तुरंत समझ जाते हो और उसे और ज़्यादा परेशान नहीं करते, बल्कि उसे शांत करने की कोशिश करते हो। बस यही है इमोशनल इंटेलिजेंस।
मेरे इतने सालों के काम में, मैंने देखा है कि जो लोग अपनी और दूसरों की भावनाओं को समझते हैं, वे बातचीत में बहुत सफल होते हैं। एक बार मुझे एक बहुत ही भावुक क्लाइंट से डील करनी थी। वह अपनी बात रखते हुए थोड़ा परेशान हो रहे थे। मैंने तुरंत महसूस किया कि मुझे सिर्फ़ उनके शब्दों पर नहीं, बल्कि उनकी भावनाओं पर भी ध्यान देना होगा। मैंने उन्हें शांत किया, उनकी बात सुनी, और फिर अपनी बात रखी। नतीजा ये हुआ कि डील भी हुई और हमारा रिश्ता भी मज़बूत हुआ। ये मेरा निजी अनुभव है कि अगर आप सिर्फ़ लॉजिक से बात करते रहेंगे और भावनाओं को समझेंगे नहीं, तो कई बार अच्छी डील भी हाथ से निकल जाती है।
तो, एक अच्छे नेगोशिएटर के लिए emotional intelligence बहुत ज़रूरी है। यह आपको सामने वाले की असली ज़रूरत और डर को समझने में मदद करता है, भले ही वह सीधे-सीधे न कह रहा हो। जब आप सामने वाले की भावनाओं को समझ पाते हैं, तो आप अपनी बात को इस तरह से रख पाते हैं कि उसे बुरा न लगे और वह आपकी बात सुनने को तैयार हो जाए। यह आपको सही समय पर चुप रहने और सही समय पर बोलने की समझ भी देता है। अब आप समझ गए होंगे कि बातचीत में दिमाग के साथ-साथ दिल का इस्तेमाल करना भी कितना ज़रूरी है।
active listening
तो दोस्तों, बातचीत को बेहतर बनाने के लिए हमने बहुत सारी बातें सीखीं, है ना। लेकिन एक और बहुत ज़रूरी बात है जो आपकी नेगोशिएशन को सुपर-डुपर बना सकती है – वो है active listening। ये सुनने का एक ऐसा तरीका है जो सिर्फ़ कानों से नहीं, बल्कि दिमाग़ और दिल से भी होता है।
आप सोच रहे होंगे कि सुनना तो सबको आता है, इसमें क्या ख़ास बात है। लेकिन active listening का मतलब सिर्फ़ ये नहीं कि सामने वाला क्या कह रहा है, बल्कि ये समझना भी है कि वो क्यों कह रहा है। जैसे, अगर आपका दोस्त कहता है कि उसे भूख लगी है, तो आप सिर्फ़ ये नहीं सुनते कि उसे भूख लगी है, बल्कि ये भी समझते हो कि उसे कौन सी चीज़ खाने का मन है या वो कितनी देर से भूखा है। बस यही है एक्टिव लिसनिंग।
मैंने अपने करियर में, ख़ासकर जब मैं लोगों से बातचीत करता था, तो इस चीज़ की ताकत को महसूस किया है। एक बार मुझे एक क्लाइंट से बात करनी थी जो बहुत नाराज़ था क्योंकि उसका काम समय पर नहीं हो पाया था। अगर मैं सिर्फ़ उसकी शिकायतें सुनता, तो शायद बात बिगड़ जाती। लेकिन मैंने ध्यान से सुना कि वो किस बात से सबसे ज़्यादा परेशान था – क्या उसे डर था कि उसका प्रोजेक्ट पूरा नहीं होगा, या उसे लग रहा था कि उसकी बात सुनी नहीं जा रही। मैंने उसकी भावनाओं को समझा और फिर जवाब दिया। नतीजा ये हुआ कि वो शांत हो गया और हमने मिलकर हल निकाल लिया। ये मेरा सीधा अनुभव है कि जब आप सामने वाले की बात को पूरी तरह समझते हैं, तो आप उसे बेहतर तरीके से जवाब दे पाते हैं।
तो, active listening का मतलब सिर्फ़ सुनना नहीं होता, बल्कि पूरे ध्यान से समझना होता है। इसमें आप सामने वाले की बातों को बस सुनते ही नहीं, बल्कि ज़रूरत पड़ने पर सवाल भी पूछते हैं ताकि आपको सही मायने में सब कुछ समझ आ सके। साथ ही, आप उनकी कही बात को अपने शब्दों में दोहराते हैं जिससे सामने वाले को महसूस हो कि आप सच में उनकी बातों को गंभीरता से ले रहे हैं। इसके अलावा, उनकी बॉडी लैंग्वेज यानी हावभाव को भी पढ़ना ज़रूरी है, क्योंकि कई बार इंसान कुछ कहता है लेकिन उसकी भाव-भंगिमा कुछ और बयान करती है। एक्टिव लिसनिंग से आप सामने वाले की असली ज़रूरतें और चिंताएं अच्छे से समझ पाते हैं।
ये सिर्फ़ एक स्किल नहीं है, बल्कि एक आदत है जिसे अगर आप अपना लेते हैं, तो आपकी हर बातचीत ज़्यादा आसान और सफल हो जाती है। आप सिर्फ़ एक अच्छे बात करने वाले ही नहीं, बल्कि एक अच्छे इंसान भी बन जाते हैं।
negotiation tools and examples in hindi
चलो दोस्तों, अब तक हमने बातचीत के सारे ज़रूरी हिस्से सीख लिए हैं। अब मैं आपको कुछ ऐसे खास औजारों और उदाहरणों के बारे में बताता हूँ जो आपकी बातचीत को और भी आसान बना देंगे। इन्हें मैं negotiation tools and examples in hindi कहता हूँ। ये ऐसे छोटे-छोटे तरीके हैं जिनसे आप किसी भी बातचीत में समझदारी से काम कर सकते हैं।
पहला औजार है ‘अपनी सबसे अच्छी दूसरी पसंद जानना’। इसे हमने ‘बेस्ट अल्टरनेटिव’ भी कहा था। सोचो, अगर आप अपनी पसंदीदा आइसक्रीम लेने गए हो और वो नहीं मिली, तो आपके पास सबसे अच्छी दूसरी कौन सी आइसक्रीम है जो आप ले सकते हो। या फिर कोई और दुकान जहाँ आपकी पसंदीदा आइसक्रीम मिल जाए। मुझे याद है एक बार मुझे एक प्रोजेक्ट के लिए एक सप्लायर से डील करनी थी। उनकी कीमत बहुत ज़्यादा थी। मैंने पहले ही कुछ और सप्लायर्स से बात कर रखी थी, तो मुझे पता था कि अगर इनसे बात नहीं बनी, तो मेरे पास क्या विकल्प है। जब आप जानते हो कि आपके पास दूसरा अच्छा रास्ता क्या है, तो आप ज़्यादा आत्मविश्वास से बात कर पाते हो और सामने वाला भी आपकी बात को गंभीरता से लेता है।
दूसरा औजार है ‘सही सवाल पूछना’। मैंने पहले भी बताया था कि कैसे सवाल पूछने से आपको सामने वाले की असली बात समझ आती है। जैसे, अगर आपका दोस्त आपसे कोई चीज़ मांग रहा है, तो उससे पूछो “तुम्हें ये क्यों चाहिए।” या “तुम इसका क्या करोगे।” जब आप सवाल पूछते हो, तो आपको पता चलता है कि सामने वाले की ज़रूरत क्या है और फिर आप उसी हिसाब से अपना जवाब दे पाते हो। मैंने अपने काम में अनगिनत बार पाया है कि एक सही सवाल पूरी बातचीत का रुख बदल सकता है। यह मेरी सालों की विशेषज्ञता का निचोड़ है।
एक और बहुत काम का औजार है ‘भावनात्मक रूप से स्मार्ट होना’ या emotional intelligence का इस्तेमाल करना। इसका मतलब है कि सिर्फ़ बातों पर ध्यान नहीं देना, बल्कि सामने वाले के हाव-भाव और उसकी भावनाओं को भी समझना। मान लो, आपका छोटा भाई किसी बात पर रो रहा है। आप सिर्फ़ उसकी बात नहीं सुनते, बल्कि समझते हो कि वो उदास क्यों है। जब आप सामने वाले की भावनाओं को समझते हो, तो आप अपनी बात को इस तरह से कह पाते हो जिससे उसे बुरा न लगे और वो आपकी बात सुनने को तैयार हो जाए। ये आपकी विश्वसनीयता को भी बढ़ाता है।
अब कुछ उदाहरण लेते हैं ताकि ये negotiation tools and examples in hindi आपको और अच्छे से समझ आ जाएँ।
उदाहरण 1: छुट्टी मांगना
आप टीचर से छुट्टी मांगना चाहते हो। आपका औजार क्या होगा।
तैयारी: सोचो कि छुट्टी क्यों चाहिए और किस दिन चाहिए।
सवाल पूछना: टीचर से पूछो कि “क्या अभी कोई ज़रूरी क्लास है।” या “क्या आप कोई ज़रूरी काम करवा रहे हैं।”
प्रस्ताव देना: “मैम, अगर मैं आज छुट्टी ले लूँ, तो मैं कल ये काम पूरा करके लाऊँगा और दोस्त से नोट्स भी ले लूँगा।”
लचीलापन: अगर टीचर मना करें, तो पूछो “क्या मैं आधे दिन की छुट्टी ले सकता हूँ।
उदाहरण 2: कोई चीज़ खरीदना
आप बाज़ार में एक नया फ़ोन खरीदना चाहते हो।
तैयारी: आपको किस कंपनी का फ़ोन चाहिए और कितने पैसे तक खर्च कर सकते हो, ये पहले से सोच लो।
सवाल पूछना: दुकानदार से पूछो “इसमें क्या-क्या खास बातें हैं।” और “क्या इसमें कोई डिस्काउंट मिल सकता है।”
प्रस्ताव देना: “मैं ये फ़ोन लेना चाहता हूँ, लेकिन मेरा बजट इतना है। क्या आप इसमें थोड़ा कम कर सकते हैं।”
अल्टरनेटिव: अगर वो नहीं माने, तो सोचो “क्या कोई और दुकान है जहाँ ये फ़ोन मिल सकता है।” या “क्या मैं इसकी जगह कोई और फ़ोन ले सकता हूँ।”
ये कुछ आसान से negotiation tools and examples in hindi हैं जिन्हें आप अपनी रोज़मर्रा की ज़िंदगी में इस्तेमाल कर सकते हो। इन्हें अपनी आदत बना लो, और देखना आप किसी भी बातचीत में आसानी से अपनी बात रख पाओगे और अच्छे नतीजे पा सकोगे।
conclusion
तो दोस्तों, देखा आपने बातचीत की कला कोई रॉकेट साइंस नहीं है, बस कुछ बातें हैं जिन्हें ध्यान में रखना होता है। हमने negotiation skills की शुरुआत से लेकर उनकी अहमियत, एक अच्छे नेगोशिएटर के गुण, और काम आने वाली तकनीकों तक सब कुछ सीख लिया। मेरे लिए तो सबसे ज़्यादा काम की चीज़ ‘एक्टिव लिसनिंग’ रही है – जब मैंने दूसरों को सच में सुनना शुरू किया, तो आधी समस्या वहीं सुलझ गई। और हाँ, वो ‘बेस्ट अल्टरनेटिव’ वाला फंडा, जिसने मुझे हमेशा एक बैकअप प्लान रखने की हिम्मत दी।
अगर आज मुझे अपने छोटे भाई को समझाना हो, तो मैं यही कहूँगा कि बातचीत सिर्फ़ ऑफ़िस की मीटिंग्स तक ही सीमित नहीं है। ये तो ज़िंदगी के हर कदम पर काम आती है। सोचो, चाहे मम्मी से थोड़ी और देर खेलने की इजाज़त लेनी हो, या दोस्तों के साथ कहीं बाहर जाने का प्लान बनाना हो – ये हुनर तुम्हें हर जगह मदद करेंगे। असल में, ये बस सामने वाले को ठीक से समझने और अपनी बात को अच्छे तरीके से कहने की कला है। मैंने अपनी ज़िंदगी के अनुभवों से यही सीखा है कि हर बातचीत एक मौक़ा होती है – कुछ नया जानने का, और किसी भी हालात को और बेहतर बनाने का।
मुझे पूरा भरोसा है कि ये सारी बातें आपके बहुत काम आएंगी। इन्हें सिर्फ़ पढ़ना नहीं है, बल्कि अपनी ज़िंदगी में आज़माना भी है। तो अब बताओ, इस पूरे ब्लॉग पोस्ट से तुम्हारा सबसे पसंदीदा हिस्सा क्या रहा। कुछ नया सीखा हो या कोई बात सीधे दिल को छू गई हो, तो नीचे कमेंट में ज़रूर बताना। मुझे तुम्हारे अनुभव जानने का इंतज़ार रहेगा।